बुधवार, 14 अगस्त 2019

है भारत की शान तू, मान और स्वाभिमान भी, ज़न - ज़न की है जान तू...
है सुहाना हमारा जहां आँच न कभी आयेगा और ऐसे ही निखरता जाएगा l
हे शूरवीरों तुमने जो जहां हमे है प्रदान किया,कसम तुम्हारी हम खाते हैं यूँ ही आगे बढ़ता जाएगा ll
तुमको भी हम सब पर नाज़ होगा क्यूँकी चांद भी हमारे खाते में आया है!
सूरज की तपन सा ओज है देखों हमारे आज के जवानों में l
मान और सम्मान की अदाएं आज भी रौनक को जगाती हैँ l
वहीं सुन्दर बलाएँ इतराते, इठलाते शौहर को रण में सजाएँ उनको विजयी द्वार दिखातीं हैँ ll
विज्ञान से लेकर धर्म को ज़न - ज़न ने पहले से भी बढ़ाया है l
जो खोया था कभी हमने, उसे भी पाने की हमने ठानी है,
अखण्ड भारत का सपना जो कभी तुमने हमें दिखाया था,
सौभाग्य जगाने के हेतु हम सब मिलकर कदम बढ़ायेंगे I
सब मिल आज हम ये सौगातें लाएँ हैं फिर से नया हिन्दुस्तान बनायेंगे ll
झंडे में माँ बसी हैं या फिर भारत माँ का है प्रतीक...
है नमन इस भारत माँ को जिसमें बसी है जान सबकी l
याद रखना आज हमें है, जाने न पाये आन, मान और  शान इसकी...
कितने अच्छे हैं भाव इसके, रंग रुप भी न्यारा है l
है तिरंगा सबका प्यारा, देश छिपा है इसमें हमारा ll
चलो चलें हम आज मिल सभी, छुट न जाए कोई साथी हमारा...
कदम से कदम मिलेगी जब चाल सबकी, मर मिटेंगे शत्रु सारे l
याद सदा तुम सारे रखना, भाव विभोर की अति न करना...
लोग रुलाते हैं उन्हें जो बह जाते हैं भावों में ll
सोच - विचार कर कदम उठाना, दिल के साथ दिमाग को भी चलाना l




दुर्योंधन का आत्ममंथन


सूर्य अस्ताचालवस्था में है... कुरुक्षेत्र का यह रणक्षेत्र। .
मन और तन की यंत्रणा से पीड़ित मृत्यु को बुला रहा ,
सहस्त्रों और सदियों से निंदा और घृणा रहा शिकार मै,
पिता जन्मांध वहीं माता गांधारी ने अंधेपन को लिया स्वीकार।।

तुम तो ऐसे नहीं हो ,फिर क्यूँ तुमने मुँह फेर हमें अंधकार में बढ़ने दिया।
यदि बालपन से ही रहते साथ हमारे तुम ,गलतियों पर देते फटकार ,
तब हम सब भी कुमार्ग पर न चले होते ,न होता कोई अभिचार।
तुम्हारा मुख  मोड़ना...ही बन गया है सारे ब्यभिचारों का आधार।।

भीष्म पितामह के आदर्श और तप भी हो गए थे क्यूँ  मौन  ?
जब कर  रहा था भरी सभा में मैं अपने  ही कुलबधू का चिर हरण ,
उस बुद्धिजीवियों  से भरे सभा में ,ना  ही किसी ने कड़ा विरोध किया।
काश ! ऐसा न हो सका ... ,जिसका फल है कुरुक्षेत्र आज अपनों से कराह रहा।।

गुरु द्रोण ने पुत्रशोक में मध्य रणक्षेत्र क्यों हथियार को फ़ेंक दिया।
किस स्वार्थ ने एकलब्य का अंगूठा काट एक सैनिक का बल छीन लिया ,
केवल क्या शक्ति की लालसा मेरे पास ही थी जो दुराशक्ति को ओढ़ लिया।
कर्ण ,द्रोण और पितामह की  बुद्धि को क्या तुमने ही हर लिया था ?

मैं बड़ा थोड़ा अभिमानी द्रौपदी के माखौल को न सह सका,पर...
युधिष्ठिर के जुवे के लत को तुम भी तो न रोक पाए।
लेकिन... हे कृष्ण... मेरा मन आज कराह रहा है कि ,
अंधेपन ने अँधेरे का विस्तार किया ,
तू दूरदृष्टि से भी इस रणक्षेत्र में अपनों के ही वार को न रोक सके।
परिणति यही है तुम जिधर हो जीत उसी की होनी है ,
पांडवों का त्याग और तीब्र बुद्धि ने तुमको हमसे छीन लिया...
याद रखेगा जग सारा की दुर्बुद्धि का त्याग, जहाँ अँधेरा न रह पायेगा।।

(लेखक : श्री सुब्रतो बनर्जी )

(अनुवादक : सुधा पाण्डेय )


रविवार, 8 जुलाई 2018

वार्तालाप

संकरी संकरी गलियों के वार्तालाप को सुन आज का मानव भी आपनी चुनौतियों को स्वीकारोक्ति की अनुमतियाँ
देते हुए आ खड़ा होता है संघर्षों का सामना करने हेतु | गलियों ने चौरस्ते से पूछा, " तुम्हे परेशानीयों से नहीं जूझना पड़ता पर्यावरणीय-प्रदूषणों से और विभिन्नताओं से भरे मानवों के आवाजाही से" | उसके जबाब ने हम जैसे मानवों की भी असमंजसता को समाप्त करते हुए कहा ,"क्यूँ परेशानियाँ आएँगी ही मुझे तो बल्कि तस्सली मिलती है इन भीड़ों के बीचों-बीच ही ,क्यूंकि सरलता और एकांतवास तुम्हे वस्त्विक्तावों की खूबियों से अनभिज्ञता ही प्रदान नहीं करता वरन तुम्हारी संघर्षशीलता को कमजोर कर देता है और यही नहीं तुम्हारे अहम भी विचलित हो जाते हैं जो की वस्त्विक्तावों से परे होती हैं.

रविवार, 25 दिसंबर 2016

उमंग

कतारों को देख जिंदगी की साम्यता मुझे कुरेदती है ?
वर्ष को नाम बारह महीने की संयुक्तता ने दी है ,
परिवार की सफलता उसमें रहने वाले प्रत्येक जान से है ,
देश की तरक्की भी तो तरक्कीपसंद लोगों से तो है...है न !

गुजरे हुए वर्षों से ना कोई गिला है हमें वो तो हमारी ताकत हैं ,
ताकत न बन जाये कमजोरी मेरी इसीलिए ईलाज जरुरी है |
मर्ज की दवाओं में कड़वाहट (स्वाद)भी आनी जायज है ,
हताशा ने रुवासे को संशय ने बेचैनी को दूर हमें भगाना है !!

उमंग और उत्साह,कतारों की परिपूर्ति से ही हाँथ लगनी है ,
मायुशी और उदासी को परिणाम से उमंग में बदलना है !
आशाओं के साथ चलो उमंग और उत्साह भी साथ में हो लेंगे ,
गत साल को अलविदा,आगत वर्ष अभिनंदनीय है !!

आश मेरी छोटी है उम्मीद हमारी चोटी है ,
उमंग उत्साह व् उल्लास मेरे साथी हैं !चलो सब मिल जुलकर ,
उम्मीद को साथ लेकर कसम विगत वर्ष को देते हैं , थकेंगे न कदम मेरे 
ऐसे अपवाद कसमें न मुझे खानी है किन्तु अनवरत बढ़ते रहने की कसम हम तुमको देते हैं !!!
हाँ यही उमंग जिलाए रखना तुम भी दे दो ना आशीर्वाद हमें...!!!

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

स्वतंत्रता दिवस... मायने अपने-अपने

जन-जन ने ललकारा है आज तिरंगा फहराना है ,क्यूंकि स्वतंत्रता-दिवस मनाना है |
बदलते जा रहें हैं मायने इसके अंतरंगता छलकाना है,आज स्वतंत्रता-दिवस मनाना है ||

बूढ़े-बच्चे या हो जवान सबमें जोश जगाना है,क्यूंकि स्वतंत्रता-दिवस पर तिरंगे को लहराना है |
झंडे-तले सब एक भाव व् जोश भरे जयहिंद के उद्दगार लिए निर्भीक हो आगे ही बढ़ते जाना है ||

माँ को कोई आँख दिखाए अब सहन नहीं करना है ,आपसी मतभेद भुला देशहित ही ठिकाना है |
मन-धन-जन तीनों को अब गुलाम न बनने और बनाने की आज से हमने ठानी है ये दिवस रोजाना है ||

लहराते-तिरंगों से आ रही मौन आवाजों से शहीदों के बलिदानों की कीमत के भाव को हमारे जगाना है |
सुसुप्तावस्था को सक्रियता ,नकारात्मकता को सकारात्मकता के बीजों को अब हमें चतुर्दिक उपजाना है ||

स्वतंत्रता-दिवस के मायने देखों ना सबके हैं अपने-अपने बच्चों में चाकलेट युवाओं में विकास और बूढों में मिठास का ले स्वतंत्रता-दिवस मनाना है |
स्तरीय जागरूकता जो भी हो चतुर्दिक परिवर्तनों से लबालब विकासशीलता का नारा हमारा है ||