गुरुवार, 21 जनवरी 2016

गणतंत्र-दिवस

हमारे राष्ट्रीय त्यौहार में से एक प्रमुख त्यौहार हमारा गणतंत्र-दिवस है |यदि हमारे त्यौहार हमारी परम्पराओं और संस्कृतियों को हमारे स्मृति-पटल पर जिलाए रखने के साथ-साथ एक नयी उमग और नए संचार को संचालित करते हैं वहीँ हमारे राष्ट्रीय त्यौहार भारतीयता की एकात्मकता को नई झंकार से तरंगित करते हैं | दो साल ग्यारह माह और अठारह दिन के अन्तराल में विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान (२२ भाग ३९५ अनुच्छेद ८ अनुसूचियाँ) को तैयार करने के उपरांत २६ जनवरी १९५० को हमारा संविधान पूर्णतया अपनाया गया था | यदि हम अपने लोकतंत्रीय इतिहास पर नजर दौङाएँ तो इसकी वृक्ष की जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं |यही नहीं इसका प्रथम श्रीगणेश, गौर करें तो ऋग्वेद और अथर्ववेद के उपरांत शुक्राचार्य के नीतिशास्त्र और कौटिल्य अर्थशास्त्र में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है | इसको विस्तार रूप से समझने के लिए डॉ॰सुभाष कश्यप की पुस्तक भारतीय राजनीति और संसद की इन पंक्तियों को ग्राह्यता प्रदान करनी होगी जो इस प्रकार है ,"ऋग्वेद में 'गण' से अर्थ गणना अथवा संख्या से था और गणराज्य संख्या से शासन अथवा लोकतंत्र थे |ऋग्वेद और अथर्ववेद में 'सभा'तथा 'समिति' नामक संस्थानों का उल्लेख मिलता है | ऋग्वेद आदेश देता है कि जनसाधारण के विभिन्न वर्गों के विशिष्ट व्यक्तियों की शक्तिशाली राजसभा का गठन किया जाये |इस राजसभा में विद्वान् ,बुद्धिमान और युद्धकौशल में निपुण लोग हों जो सब मिलकर राष्ट्र के हित में कम करें |...अथर्ववेद में प्रार्थना मिलती है कि वाद-विवाद में पटुता आये और विरोधी पर सफलता मिले | यह भी आभाष मिलता है कि कार्य समिति में एक से अधिक दल भी हो सकते थे और ऐसी स्थिति में वाद-विवाद बहुत रोचक और जीवंत हो जाता था और कभी-कभी कठोर शब्दों का आदान-प्रदान भी हो जाता था ... |"१ इस प्रकार हमारे वेद पुराण लोकतान्त्रिकता के सबसे बड़े प्रमाण हैं | जरुरत है उससे समय-समय पर अध्ययन कर उसके भावों व मान्यताओं पर गौर करने की | हमारा आज का भारत अनेक बाधाओं को अपने साहस-पूर्ण क़दमों तले रौंदता हुआ कुछ बाधक परिस्थतियों को सुलझाता हुआ प्राकृतिक आपदाओं से निवारणार्थ नए-नए मानक गतिविधियों को अपनाता हुआ प्रतीत होता है वहीं अपने अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में वैश्वीकरण को तरजीह देते हुए पड़ोसी देशों में भी शांति-संचारित करने हेतु मधुरता और मेल-मिलाप करता हुआ अपने गंतव्य पर अग्रषित हो रहा है  | कमियां और विरोध को यदि हम एक सलाहकार की भांति लें और उसपर मनन-चिंतन करते हुए आगे बढ़ें तो सफलता अवश्यंभावी में परिवर्तित हो जाएगी | हमने क्यूँ खोया या पराजित का आलिंगन करना पड़ा उसपर एक सटीक बहस करें तो हल अपने-आप निकल आयेगा | याद रखो आपसी कलह और मतभेदों की गहराइयाँ विकसित होने के सबसे बड़े अवरोधक तत्व हैं |" तिरंगे की शान बढ़ायेंगे यूँ  ही मस्तमौला बन आगे हम बढ़ते जायेंगे | ना रुके थे कभी हम ना ही रुकेंगे कभी अब हम यूँ विजयी पताका ले आगे बढ़ते जायेंगे | माँ तेरे इस तिरंगे आँचल तले हम सब मिलजुल कर कदम से कदम मिला आगे बढ़ते जायेंगे |


                                                                                                                              
                                                                                                     

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