ये दो संगठनो के चुनावी रैली का सम्बोधन चिन्ह है,जिसे एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच के ही मुख्य लडाई है । उसके अलावा जो भी है सब (अन्य दल) जनता को कैसे बरगलाते हुए वोटो को कैसे बिखेरा जाये का ही प्रयास है । अब बिहार की जनता को फैसला करना है कि वो फिलहाल हुए वाद-प्रतिवाद पर गौर करते हुए बुद्धिमता को आजमाये । आगे बढना है तो जात-पात और कट्टरवादिता से अलग राजनीति को अपनाना होगा जिससे सही मायने मे विकास हो सके । उन्हे तलाशना होगा कि क्या कारण है 'राज्य के पिछडेपन का' ? बल,बुद्धि और धन, तीनो तो है इस राज्य मे फिर भी क्यूँ भटकना पड़ता है यहाँ के नागरिकों को ?
अब इन दो सम्बोधनो पर निगाहे जाती है तो अपने आप एक प्रश्न अन्तरदृष्टि को उकेरते हुए कह उठती है कि 'परिवर्तन' की भंगीमा कुछ हद तक समझ में आती है लेकिन 'स्वाभिमान' की प्रक्रियायें असमंजसता को दर्शाती हैं जिसके तहत बार-बार एक ही विचार मन को झकझोरती हुयी प्रतिक्रियात्मकता के लिये उद्वेलित करती है ।
'स्वाभिमान' अधिकांशतः केवल अपने अहम की पुर्ति ही कर पाता है जबकि 'परिवर्तन' (जिसमे विकास छिपा है )के लिये हमेशा 'स्वाभिमान' के प्रति भी समझौता करना पडता है ।
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