रविवार, 13 सितंबर 2015

हिंदी-दिवस

हिंदी-दिवस प्रत्येक-साल आकर कहीं न कहीं हम भारतीयों को यह याद दिलाता है कि अपनी पह्चान को भुलना मत या इसे यूँ कह लें कि आपसी मतभेदों के तह्त इस भाव में ही मत उलझे रहें कि 'हम बङे तो हम बङे' । मानो वो हमसे कह रही हो मुझे अपनो के बीच दरारों को डलना नही वरन इसे पाटना है । अपनाने में असमर्थता हो सकती है किन्तु पह्चान कभी धूमिल न हो कोशिश ऐसी होनी चाहिए, और बिना किसी की अवमानना और अवहेलना किये सहर्षता व आत्मीयता के साथ स्वीकारने की मनःस्थिति बनानी चाहिए । हम भारतीयों की सह्जता और सरलता ही हमें सबसे अलग करती है । इसी मनोभावना के साथ आगे बढने के लिए हिंदी-दिवस मानो हम सबको उत्प्रेरित करती है ।
हिंदी को इंग्लिश जामा पहना कर उसके शब्दों को विस्तार दें जिसमें भाव तो तुम्हारे हिंदी हैं |
तब न किसी को वैर होगा या न तो कोई शौतेला होगा क्यूँकि ये इंग्लिश ही खेवनहार है ||

शब्दों का विस्तार ,भावों कि पहचान तुम्हारी अपनी है ये आवरण क्या एकता को दर्शा पायेंगे !
सभी बोलियाँ सभी भाषाएँ मिलकर आज विचरण करें जिसमें न कोई भेदभाव रह- जायेंगे !!

हिंदी मुझसे कहती है मुझे राजभाषा कहो या विश्व-भाषा मुझमें कोई अभिमान नहीं लेकिन समानता की आस है |
कोई तर्क-वितर्क अब मुझे नहीं है भाता मेरे सभी हैं भाई-बन्धु,सर्वोच्चता कि चाह नहीं समानता में मेरा विश्वास है ||

शब्दों को पहचान मिले या फिर तुम्हारे भावों को एक नई राह मिले ,मेरी इसमें कोई दखलंदाजी नहीं |
हे मानव ! मानवीयता को पहचान सको तो पहचान लो ,आवरण चाहें कोई भी हो इसकी मुझे परवाह नहीं ||

 हम थोपना तो कभी जानते ही नहीं अन्यथा आज हिंदी दिवस न मनाते ! यह दिवस शायद तुम्हारे अन्तर्मन् को छू ले और तुम्हारीं अंतरात्मा आज अपनेपन को सहर्षता से अंगीकार करते हुए  इस भावना को जगा दे कि
अपनी एकत्व के पहचान से कितने अनभिज्ञ हो ? यह हमारी विभिन्नताओं को एक करने का सेतु है !
उठ जाग और देख ! इसकी विशालता को जिसमें भाव है ,तुम्हारी भारतीय संस्कृति है और सारी भाषाओँ का समावेश है !!!


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