सोमवार, 6 अप्रैल 2015

प्रकृति और हम

प्राकृतिक सौन्दर्य किसे नहीं लुभाता है !सभी इसके सोंदर्य के दीवाने होते हैं फिर उसके सौन्दर्य पर ग्रहण न लगे इसका जिम्मा भी तो प्रत्येक नागरिक है | बागों की हरियाली हो या जलस्रोतों के रखरखाव का जिम्मा या फिर पर्यावरण को दूषणमुक्त रखरखाव का भार ही क्यूँ न हो ? सभी हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं |
मौसम का बदलना और इसमें हो रहे बदलावों को सही नहीं मानते हैं कारण जब कि हमसभी ही हैं |
जो भी हो प्रकृति हमारा हमदर्द व अकेलेपन कह लो या समूह में सबका अनोखा साथी है | सुबह-सुबह यदि मिलना हो जाये तो कोई असमर्थता या शारीरिक व्यथा छूना तो दूर आपके पास भी नहीं भटक सकता है | सहमा और चहकता नीला आसमान में सूर्य कि सुंदर लालिमायुक्त छटा के साथ-साथ भीनी-भीनी हवा कानों के पास से मानों यूँ गुजरती हैं जैसे कब का विछड़ा हुआ साथी हौले से सटीक संदेश भेजा हो ,या फिर चिड़ियों का कलरव मानों मधुर-संगीत छेड़ रहीं हों या फिर हमारी उदासी को दूर करने के लिए प्रकृति ने उल्लासित आभा को भेजा हो ! उस समय एकांतवास ही प्रिय होता है कोई एहसास बाकी नहीं रह जाता है | लेकिन क्या हम प्रकृति के भेजे हुए उमंगों को आलिंगनबद्ध करने के लिए उससे वार्तालाप का समय निकालते हैं ? बिचारी चुपचाप रोज दस्तक देने के बावजूद हताशा को स्वीकार करती है | वो मूक है फिर भी बहुत कुछ कहना चाहती है | लेकिन हमारी व्यस्तताओं को दोषारोपण करें या खुद कि लापरवाही जो प्रकृति के गर्भं छिपे हीरे का अवमूल्यन करते जा रहे हैं जो किसी हदतक उसे प्रकोप कि दशा में अवतरित करने हेतु विवश करते हैं | फिर उसका आक्रोशित होना जायज ही है ! वो मात्र हमारे वातावरण को ही शुद्धता नहीं प्रदान करती है वरन प्रेरणादायक शिक्षक के समान हमारे मनोबल को सकारात्मक बनते हुए सर्वदा आगे बढ़ने के लिए मार्ग प्रशस्त करती है | यही नहीं हमारे एकाकीपन को अपने सहज स्पर्शों से लुभाते कभी माँ बन जाती है तो कभी मन को बहलाने वाला हमसफर बनते हुए गुनगुनाती है तो कभी-कभार एक प्रिचर बनकर थोड़ा समझाना तो थोड़ा अपनी उपस्थिति कि महत्ता को जतलाने वाला साथी बन जाती है | जो भी हम कभी उसके ऋणों से मुक्त होना तो दूर सोच भी नहीं सकते हैं | अपने सबसे बड़े हितैषी कि अवमानना छोड़ो फिर देखो कहीं कोई हताशा और निराशाजनक परिस्थितयाँ तुम्हें हतोतशाहित करने का दुस्साहस नहीं करने पाएंगी | उसे सम्मान दो तो तुम्हीं जग भी सुखी होगा | अपने हित को साधो तो जग सधेगा ये सारी प्रकृति कि मजबूती में ही समाहित है | समझो,जागो !अभी भी देर नहीं हुयी है | कह रही है प्रकृति हमसे ! जब जागो तभी सवेरा !! इसकी गहराईयों को समझो ! खान है खान !खुशियों और निरोग्यता का खान ! मुझे अपना लो !मेरा अपमान तुम्हारे लिए नुकसानदायक है !मै अपने संतान को नुकसान और हानि का शिकार होते  हुए नहीं देखना चाहती ! फिर भी मन में एक आस है ! एक नयी अभिलाषा है !! मेरी संतान जाग्रत है वो और हमसे विमुख नहीं हो सकती !!!!!

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