सोमवार, 20 अप्रैल 2015

जीवन-चक्र

जीवन-चक्र को चलने दो तुम बहुत नादान हो इसकी गहराइयों में गोते तो लगा लेकिन जानने कि कोशिश न कर |
अरे!पगली छोड़ दे अपनी जिद्द व समझा ले अपने आपको,अब अपने मुताबिक लोगों को समझनेने कि कोशिश न कर ||

सही ही तो है कोई यहाँ अमर नहीं फिर भी काम तो ऐसे कर डालते हैं मानों उनपर किसी कि नजर ही नहीं |
क्या सच है क्या झूठ आ बहर निकल इन उलझनों से बस बहुत हो चूका तेरा शोध अपने पर तेरी नजर ही नहीं ||

कब तक लड़ेगी, जीत न पायेगी ,आंसूओं को मत रोक बह जाने दे अब और किसी उम्मीद कि कदर भी नहीं |
अब तेरी जो मुस्कान है उसमें भी आंसू को छलकते देखा है ,खुल कर हँस क्यूँकि नाउम्मीदी कि कोई उमर नहीं ||

ये जो जीवनपथ है तेरे अपने ही चुने हुए हैं फिर डरती क्यूँ है भोलापन छोड़ निडर बनने कि राह यही है |
तुझे अबतक तो चलना आ ही गया है फिर असंमजसता के भावावेश के जकड़न से निबटने कि चाह यही है ||

चलने दे ,घुमाने दे अपने जीवन-चक्र को नहीं थमा है नहीं थमेगा अपनी आशाओं को धूमिल होने कि पहचान न बन |
विश्वास को सत्यापन कि कोई अब जरुरत नहीं ,सकारात्मकता कि राह पर चलना मत छोड़ लक्ष्य से अंजान न बन ||

हार-जीत या मान-सम्मान व उपाधियाँ जीवन-चक्र के आये-गए पहलू हैं!आशाओं को आजमाने कि कोशिश न कर |
एक कोशिश जरुर कर सामान्य बनना सीख ले जीवन-चक्र कि मांग यही है !असामान्यता को पाने कि कोशिश न कर ||

उफ्फ... ये शब्दांकित भाव देखो कैसे जाल में उलझा रहे हैं !सच भी तो यही है जीवन-चक्र को चलने दो |
कुछ त्रिकाल सत्य को मानना भी जीवनपथ के सुगम संदेश हैं !मत सोचो हँसो और जीवन-चक्र को यूँ ही चलने दो ||

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