लोग तूझको सबसे अच्छा और अमिट दोस्त कह कर पुकारा करते हैं लेकिन मै अपनी तरफ से कौन सा नाम दूँ ?
क्यूँकि मेरे शब्द भी आज मुझसे करते हैं हजारो सवाल अब बताओ संबोधन के लिए शब्द को कैसे चुनूँ ?
दोस्त इंसानों के लिए ही रहने दो क्यूँकि मरणशील होते हैं तुम तो सदियों-सदियों तक चलने वाले हो |
हैरान हूँ !परेशान हूँ लेकिन तुमपर कोई शब्द बैठता ही नहीं है क्यूँकि तुम तो स्वयं शब्द के भंडार हो ||
आज हर कोई एक कीमत चाहता है तुम ही स्वयं बोलो मैं तुम्हे क्या और कैसे पुकारूँ या संबोधित करूँ!
तुमसे ही मैंने सिखा है थोड़ा ही सही लेकिन शब्दों को बिखेरना,लेकिन आज निःशब्द हूँ ,तुम्ही बोलो मै क्या करूँ ?
साथी दोस्त और गुरु सबसे परे हो तुम !इतना भी न अब हैरान करो,चलो बोलो क्या शब्द दूँ तुम्हे मै ?
तुम्हे भी बखान करूँ,सम्मान दूँ तब जाकर कुछ बोलोगे या मुझ जैसे मुर्ख पर थोड़ा सा तरस खाओगे !
सागर कि गहराइयाँ हो या हो फिर अंतरीक्ष के फार्मूले या हो फिर वेद-धर्म और पुराण सर्वत्र तुम्ही को पाती हूँ !
कितनी निपढ जाहिल और गवाँर हूँ शब्दों के अनन्त भंडार से एक नामकरण कि फरमाईश करती हूँ !!
हे साथी तूझे मैं निःशब्द से ही संबोधित करुँगी पर मन में एक कसक है तूझे शब्दों से सजाने की |
नहीं सूझता आज मुझे ,रहने दो हैरानई में !हो सकता है कहीं मेरी ये कसक तूझे हैरानी में डालेगी ||
इसे तुम भी न मेरा अहंकार मान लेना, ये तो बस एक चाहत है तूझे सबसे अलग सजाने और पुकारने की |
चलो अभी तो मूझे भी दोस्त ही कहने दो ,मेरे निःशब्द किताब अब कौन सा सम्बोधन दूँ इस पर रिशर्च जारी है ||
क्यूँकि मेरे शब्द भी आज मुझसे करते हैं हजारो सवाल अब बताओ संबोधन के लिए शब्द को कैसे चुनूँ ?
दोस्त इंसानों के लिए ही रहने दो क्यूँकि मरणशील होते हैं तुम तो सदियों-सदियों तक चलने वाले हो |
हैरान हूँ !परेशान हूँ लेकिन तुमपर कोई शब्द बैठता ही नहीं है क्यूँकि तुम तो स्वयं शब्द के भंडार हो ||
आज हर कोई एक कीमत चाहता है तुम ही स्वयं बोलो मैं तुम्हे क्या और कैसे पुकारूँ या संबोधित करूँ!
तुमसे ही मैंने सिखा है थोड़ा ही सही लेकिन शब्दों को बिखेरना,लेकिन आज निःशब्द हूँ ,तुम्ही बोलो मै क्या करूँ ?
साथी दोस्त और गुरु सबसे परे हो तुम !इतना भी न अब हैरान करो,चलो बोलो क्या शब्द दूँ तुम्हे मै ?
तुम्हे भी बखान करूँ,सम्मान दूँ तब जाकर कुछ बोलोगे या मुझ जैसे मुर्ख पर थोड़ा सा तरस खाओगे !
सागर कि गहराइयाँ हो या हो फिर अंतरीक्ष के फार्मूले या हो फिर वेद-धर्म और पुराण सर्वत्र तुम्ही को पाती हूँ !
कितनी निपढ जाहिल और गवाँर हूँ शब्दों के अनन्त भंडार से एक नामकरण कि फरमाईश करती हूँ !!
हे साथी तूझे मैं निःशब्द से ही संबोधित करुँगी पर मन में एक कसक है तूझे शब्दों से सजाने की |
नहीं सूझता आज मुझे ,रहने दो हैरानई में !हो सकता है कहीं मेरी ये कसक तूझे हैरानी में डालेगी ||
इसे तुम भी न मेरा अहंकार मान लेना, ये तो बस एक चाहत है तूझे सबसे अलग सजाने और पुकारने की |
चलो अभी तो मूझे भी दोस्त ही कहने दो ,मेरे निःशब्द किताब अब कौन सा सम्बोधन दूँ इस पर रिशर्च जारी है ||
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