शनिवार, 25 अप्रैल 2015

चीत्कार या मार

धरती की चीत्कार कहूँ या आसमान का मार या फिर खून इसे मैं प्रकृति कि चेतावनी ,
मानों हमसे कह रही है ,सुन लो और हो सके तो चेतो !क्यूँ करते हो इतनी बेइमानी |

किसानों कि अनदेखी कहूँ या फेकनीति जिसमें है केवल अपनी-अपनी मनमानी ,
हे मुर्ख-समझदार ! इतना भी नादान मत बन,ना गढ़ मानवता के नाम पर नई कहानी |

मानवतावादी और सत्यवादी कि पुकार सुना, कर रहा है तू केवल अनगिनत बचकानी नादानी |
मत बुझाओ या जताओ या अब रहने भी दो ,नहीं सहन कर पाऊँगी तुम सबकी अनबूझ शैतानी ||

हैरानी या परेशानी की ही केवल बात नहीं, लेकिन चेताना और समझाना तुम नादानों को मेरा काम है ,
माँ भला कब अनभल करती है !असहनीय उसके चीत्कारों में छिपी हुई एक गिड़गिड़ाती चेतावनी है |

तभी ऊपर से आसमान के ओले हमसे कहते हैं कब तक झेलें हम ही केवल तुमसबकी भौतिक नादानी ,
वहीं धरती कह उठती है मत खोखला करो हमको चलो जागो उठो !अब तो सुनो मेरी आत्मिक कहानी |

सचमुच प्रकृति के दिए उपहारों को क्या सजोना हम भूल गए !या अनभिग्यता को गले लगाया है ,
इतनें भी नादान नहीं कि घरफूंक तमाशा देखें हम ! माँ तूझपर आँच न आने देंगे ,हरियाली को गले लगाना है |

तेरी चीत्कार को मरहमपट्टी के तहत् खामियों को दूर भगायेंगे ,कृपा तेरी बरसती रहे ऐसा कम कर जायेंगे |
क्या करूं इंसानों को ठोकर खाकर ही जगते हैं लेकिन शपथ हमें अब लेनी होगी कि प्राकृतिक खजाना नहीं लुटाएँगे ||





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