रविवार, 5 अप्रैल 2015

तलाश

तलाशती फिरती हूँ इमानदारी और सच्चाई के सत्यापन की जो है बड़ा ही दुष्कर है,
हैरान हूँ मैं ,खुद को जब मैं न रख पाई हूँ खरी इस गोले में रख कर क्यूँकि दुर्लभता का नाम ही दुष्कर है |
बात तो सच है कि बिना मिलावट कहाँ संभव है कुछ भी प् लेना इस व्यवसाय कि दुनिया में ,
और यह सत्य है सत्यापन कि जाँच जब होती है तो प्योर के जो नजदीक हैं वही खड़े हैं कटघरे में ||

चलो एक बात तो तय है कि सभी को दोष मत दो नियति भी नहीं तो तुम्हें परखेगी फिर तराशेगी ,
सर्वदायमौन कभी मत होना अन्यथा दोष सदा के लिए नियति को ही दिया जायेगा जो तुम्हें पुचकारेगी |
जीना सीखो ,लड़ना सीखो भगवान को देखो जिसने कितने कष्टों को सह कर सम्मान रूप में आज भी पूजे जाते हैं ,
उफ्फ नहीं सुनना आज किसी की बहुत हो गया मुझे पता है जिन्दगी कि राह को हँसते-हँसते ही गुजारने हैं ||

ये जो तलाश है इसमें सकारात्मकता कि आस है जहाँ न कोई हारा है क्यूँकि हार में भी जीत को उसने तलाशा है,
रोयेंगे वे जिन्होंने हराना चाहा है हमारा क्या है हम तो आज जहाँ हैं वहाँ न तो कोई ना ही किसी पर हँसता है |
चलो बहुत हो गया है आज तुम्हारा बाचना अब तो सर्जनात्मकता कि जीवन्तता को क्रियात्मकता में ढालना है ,
बचपना को जिलाए रखना है क्यूँकि प्रौढ़ों से ज्यादा हर परिस्थितियों को जिन्दादिली के साथ जीना उन्हें आता है ||










कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें