शुक्रवार, 27 मार्च 2015

भारत-रत्न और अटल

चलो भारत माँ आज तो खुश अवश्य होगी किसी ने नवाजा है आज उसके लाल को |
क्या है उसकी पीड़ा जो इतना मौन हो गया है फिर भी खुली आँखों से खिलते कमल को देख रहा है ||

जिसने 'रार ये ठाना हार कभी न माना ''उन्हीं कि ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह रही हैं |
उन्हें परवाह नहीं है था या है तभी तो सम्मान भी चलकर उनके द्वार पर गौरवान्वित हो रही है ||

भारत माँ भी खुश है चलो मेरे आलावा भी परवाह करने वाले हैं यहाँ उसकी |
जबकि वो मनमौजी और सशक्त है इतना कि अरमानों को भी सुनना पड़ता है उसकी ||

हमसे शब्द भी मेरे कतरा रहे हैं मानों वो मुझसे कह रहे हों जिसने हार नहीं माना कभी उसको क्या कहना ?
फिर भी दिल कि उमंगे और चंद मेरे भाव और उल्लास हैं जो अपने प्रणेता को शब्दों के तहत प्रणाम कर रहे हैं ||


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