मंगलवार, 25 नवंबर 2014

उत्तर-आधुनिकतावाद

मन की चिंतन-ग्रन्थियाँ एक असमंजसता की श्रेणीबद्ध-आकृतियों की शिकार हो अनायास यह कह उठती हैं कि उत्तर-आधुनिकतावाद संभवतः एक मुड है जिसमें सामाजिकता के सैधांतिक वार्तालापों के साथ-साथ वर्तमान परिस्थितियाँ समाहित रहती हैं |
क्या यह विश्व में व्याप्त बड़े और छोटे-छोटे आंदोलनों से उत्पन्न हुई है |
क्या यह यथार्थवादी पद्धतियों के खंडन और अनेकान्तवाद की उत्पत्ति की देन है |
साहित्य और उत्तर-आधुनिकतावाद :- यह बात तो शत-प्रतिशत सत्य है कि यदि हम एक सर्वसम्मत निष्कर्ष पर पहुंचना चाहें तो नहीं पहूँच सकते हैं क्योंकि विचारों की वैभिन्यता एकमत को अंगीकार करने से हिचकती है जिसके अंतर्गत आज साहित्य में समीक्षा के तहत पाठक को वर्चस्वता देते हुए विमर्श-विश्लेषक को मान्यता प्रदान की जा रही है | आज का युग कंप्यूटर-युग,दूर-संचार-युग से परिपूर्णता की तरफ अग्रसित हो रहा है | यही कारण है की आज तार्किकता को मुद्देनजर रखते हुए सत्यापित विधियों की तरफ झुकावों को महसूस किया जा रहा है |



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