सोमवार, 24 नवंबर 2014

ख़ामोशी

ख़ामोशी क्या तन्हाईयों में ही पनपती है या तन्हाई प्रेरित करती ख़ामोशी है |
ख़ामोशी और तन्हाई क्या हर वक्त एक साथ ही रहती और एक पथ पर ही बढ़ते हैं ||

जो भी हो अच्छाई और उत्तमता से मुलाकात भी कराती है ये ख़ामोशी और तन्हाई |
वो पूछती है मुझसे क्या हुआ है आज तुम्हेँ चलो अंकित करने अपने ख़ामोशी और तन्हाई ||

क्या होगा अंकित करके ,क्यूँ करना अंकित इसे ,व्यर्थ है ,बेमतलब है अंकित करना  ही |
जो भी हो शब्द के उद्गारों से बात तो करो क्या लेना है इस ख़ामोशी को सबसे ही ||

क्या सही और क्या गलत को कौन होती हो तुम परिभाषित करने वाली ,कहती है ये ख़ामोशी |
देश भरा है समझदारों और चाटुकारों से तुम्हें नहीं भाती है तो न भाए,झल्ला कर कहती है ये ख़ामोशी ||



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