गुरुवार, 4 सितंबर 2014

गुरु-गाथा

गुरु की गाथा को व्याख्यायित करना एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि गुरु का क्षेत्र-विस्तृत होता है और वस्तृत क्षेत्र को चंद-शब्दों के अंतर्गत् पिरोना नामुमकिन है | फिर भी प्रयास करना हमारा कर्तव्य ही नहीं वरन एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत गुरु-गाथा को लेखनी के तहत अभिव्यक्त करते हुए उद्देश्यों को उजागर करते हुए समस्त गुरुओं के प्रति छोटा सा आभार व्यक्त करना है |
माँ-बाप यदि हमें शारीरिक -चोला का आधार देते हैं तो गुरु हमें हमारी पहचान से अवगत करतें हैं | हम जन्म से लेकर मरणासन्न तक की अवस्था तक गुरुओं द्वारा मिले ज्ञानार्जन को क्रियान्वयन -प्रक्रिया में अवतरित करते रहतें हैं | गुरु-गाथा हो और कबीरदास जी के दोहों का सहारा न लिया जाये यह संभव ही नहीं है | उन्होंने अपने दोहों के तहत् गुरुगान की अभिव्यक्ति में अपनी असमर्थता को व्यक्त करते हुए कहा है :
                                            सब धरती कागद करूँ, लेखनी सब बनराय |
                                            सात समद की मसि करूँ ,गुरुगुण लिखा न जाय || 
भारत तो गुरुँओं का देश है | यहाँ पग-पग पर हमें प्रेरित करने वाले सद्गुरु की प्राप्ति हो सकती है | शिक्षा और धर्म दोनों ही हमें इस सन्देश और ज्ञान से परिपूर्ण करते हैं कि जहाँ से भी तुम्हेँ सकारात्मकता की भनक मिले उससे अवगत होते हुए अधिग्रहण करने की कला को अपने में आत्मसात कर लो | फिर देखना तुम्हें ऐसी कोई ताकत नहीं है जो तुम्हें हरा सके | लेकिन इस पंगडडि्यों चलते हुए कैसे हम अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे उसका पथप्रदर्शक हमारा शिक्षक ही होता है | कभी-कभी हमारे शिक्षक मार्ग में आने वाले आकस्मिक घटनाओं से भी अवगत ही नहीं करते वरन उससे उबरने की ताकत भी हमें देते हैं | जिसमें मीठी गोली के साथ-साथ कभी-कभी कड़वी दवा भी पीना पड़ता है | क्षणिक ही सही  हमें गुस्सा तो आता है लेकिन आक्रोश नहीं , क्योंकि हम जानते हैं कि हम कहाँ गलत हैं | ऐसा भी होता है कभी-कभी हमारे शिक्षक भी अपने शिष्यों से भी कुछ गुण ऐसे होतें हैं जो उन्हें उसकी तरफ आकर्षित करती है और वे निःसंकोच उसे अधिग्रहित करने में हिचकते नहीं हैं और एक शिक्षक वहीं गुरु के रूप में परिवर्तित हो जाता है | उसे कभी समाप्त न होने होने वाली या इसे यूँ कह लें कि चिर स्थायी प्रसन्नता की अनुभूति होती है कि इस शिष्य को उचित मार्गदर्शन से कैसे अवगत कराया जाये | कभी वह उसका दोस्त बन जाता है तो कभी सख्त गुरु तो कभी स्नेहिल माँ की ममता से भी समझाता है  की उसके लिए क्या उचित है और काया अनुचित | बस एक ऐसी परिस्थितियों की संरचना करता है जिसमें शिष्य को यह समझने का मौका मिल जाये सही मार्ग पर चलने हेतु आई हुई बाधाओं को कैसे पार करना है |
आज भी ऐसे गुरु हैं और ऐसे गुरु - शिष्य की परिपाटी है | हम हताश न हो | बस जरुरत है धैर्यवान और दूरगामी परिणामों की सूक्ष्मता को पहचानने की | हमें आगे बढ़ना है ...जो भी हो उसे स्वीकार्य करने की क्षमता को उजागर करने की ...फिर देखना तुम्हारी इस ताकत को मित्र तो क्या दुश्मन भी तुम्हें गले लगाते हुए चुपचाप तुम्हारें अडचनों को दूर करने में तुम्हारा साथ देंगे |
                    अपने मानवीय मूल्यों का सौदा कभी मत करना जितना भी हो मार्ग दुर्लभ |
                    काँटों के ही साथ जहाँ गुलाब है  वहीं यह कमल का खिलना भी कीचड़ ही है ||


                                         
                                             

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