बुधवार, 27 अगस्त 2014

काश...! हम कभी बड़े नहीं होते !

कितना अच्छा होता न कि सारी उम्र हम कभी बड़े नहीं होते !
कटती रहती जिंदगी यूँ ही मजे और मस्ती में न होते  हम कभी उदास !!

न इतनी उड़ाने होती न इतने बहाने न ही होते कोई फसाने !
जो भी मिलता हम खुश हो लेते तो चैन की नींद हम सोते !!

कौन जीता हारा कौन हारा न होती हमको इसकी परवाह !
मिलबाँट कार खाते और खेलते ज्यादा होता तो थोड़ा रुठते !!

किसने क्या कहा ,कहाँ क्या हो रहा है न होती हमको इसकी चाह !
न आते इतने गंभीर सोच - विचार जिसका कोई हमराह और राह नहीँ !!

उफ्फ ... ये कैसी सोच और धारणा है हमारी जिसका कोई अर्थ नहीं !
अरे ... ध्यान से देखो बड़ा का मतलब उम्र से नहीं मन से है ! उसे तो बालपन जैसा रख सकते हैं न !!!

फिर क्यूँ ये कहना कि काश हम कभी बड़े नहीं होते ! सच हम आज भी वही हैं जैसा माँ ने मुझे पाला है |
वही गुस्सा वही सोच  बस फर्क है तो पहले विचारों को ढालना नहीं आता था लेकिन अब सीख रही हूँ ||







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