मानव की संवेदनात्मकता के भी होते हैं कई रूप और प्रतिरुप |
कभी समुद्र की लहरों सा उफान तो कभी नदियों की शालीन धार ||
कभी हमारे मन में उठे टीस को कुरेदते हैं तो सहलाते भी हैं प्यार से |
बहुत ही अजूबा है मानवीयता के संवेदनाओं के रूप और प्रतिरूप ||
हमारी संवेदनाओं ने हमें कितना झकझोरा है तो संवारा भी है |
कभी-कभी जहाँ वह मजबूती का मिसाल बना हमें शख्त बनाता है ||
वहीं कभीकभार तो अठखेलियाँ करता हुआ हमें यूँ ही छोड़ देता है |
तूफानी और झंझावत भरे राहों में सतर्क ही नहीं कराता वरन सम्हालता भी है वह हमें ||
पत्थर सा कठोर या बर्फ की शीली सी घुलनशीलता है इन संवेदनाओं में |
अपने इन्हीं रूपों को दिखा-दिखा कर जीवन के राह को सुगम बनाता है ||
जिसमें धूप की तपन शरद की शीतलता और बरसात के सुहाने बौछार हैं |
लेकिन कभीकभार हम जानकर भी नहीँ समझना चाहते हैं इन संवेदनाओं को ||
कभी समुद्र की लहरों सा उफान तो कभी नदियों की शालीन धार ||
कभी हमारे मन में उठे टीस को कुरेदते हैं तो सहलाते भी हैं प्यार से |
बहुत ही अजूबा है मानवीयता के संवेदनाओं के रूप और प्रतिरूप ||
हमारी संवेदनाओं ने हमें कितना झकझोरा है तो संवारा भी है |
कभी-कभी जहाँ वह मजबूती का मिसाल बना हमें शख्त बनाता है ||
वहीं कभीकभार तो अठखेलियाँ करता हुआ हमें यूँ ही छोड़ देता है |
तूफानी और झंझावत भरे राहों में सतर्क ही नहीं कराता वरन सम्हालता भी है वह हमें ||
पत्थर सा कठोर या बर्फ की शीली सी घुलनशीलता है इन संवेदनाओं में |
अपने इन्हीं रूपों को दिखा-दिखा कर जीवन के राह को सुगम बनाता है ||
जिसमें धूप की तपन शरद की शीतलता और बरसात के सुहाने बौछार हैं |
लेकिन कभीकभार हम जानकर भी नहीँ समझना चाहते हैं इन संवेदनाओं को ||
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