शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

साहित्यिक शोध और सिद्धांत


साहित्य में ही नहीं वरन शोध और सिद्धांत दोनों ही मौलिक ज्ञान प्राप्त करने के तरीके हें क्योकि सिद्धांत एक कथन हैं जो किसी तथ्य या घटना का खुलासा करते हैं | वहीं शोध किसी सिद्धांत पर परिष्करण,प्रमारिकरण दोष निवारण,संदेह निवारण हेतु  परिपृच्छाओं और सूक्ष्म निरीक्षण और असंख्य गवेषणाओं के तहत ही अपनी मैलिकता की सत्यता को स्थापित करता हैं|
शोध सिद्धांतो को रचना का रूप देता हैं तो सिद्धांत एक व्याख्यान के तहत किसी तथ्य या घटना का खुलासा करता हैं जो कि तर्क द्वारा अंतर्सम्बंध और अनुभव के आधार पर पुष्ट किया गया प्रस्थापनाओ का समूह होता हैं | चूँकी सिद्धांत ‘क्यों और ‘कैसे’ प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करता हैं अतः शोध वहीं उस क्यों और कैसे को क्या के अंतर्गत उसे एक प्रतिरूप में ढालता हैं |
शोध और सिद्धांत के संबंधो को भली भातिं व्याख्यायित करने के लिए सर्व प्रथम हमें यह समझना होगा की शोध को प्रतिरुपता प्रदान करने हेतु हमें अनेको प्रकार के सिद्धांतो को स्थापित करना होगा | शोधकर्ता प्राव्कल्पना के परीक्षण करने के लिए श्रोत के रूप में सिद्धांत का प्रयोग करता हैं या उसी के तहत एक मौलिक सिद्धांत की स्थापना करता हैं और अनुसन्धान के बीच के संबंधो के संदर्भ यह निर्धारण करने में कि अनुसन्धान सैधांतिक रुप से सार्थक है: :-

१.     शोध मे दी गयी प्रस्थापनाएँ सैधांतिक हैं या नही |  

२.      सैधांतिक रचना को क्रियाशील बनाना या वक्तब्य को प्रयोजन के तहत ढालना |

३.      सिद्धांतो को निरिक्षण के तहत परखना |

शोध मे सिधांत एक सेनानायक के समान है जिसके बिना परिपूर्णता की कल्पना ही नहीं की जा सकती है|

 इस प्रकार सिद्धांत  के अंतर्गत हम एक ब्याख्यान को स्वरूप प्रदान करते हैं |सामान्य भाषा मे हम कह सकते है की शोध हमे सिधांत की ओर ले जाता है और सिधांत शोध की ओर अग्रसर करता है | अतः शोधकर्ता या तो प्रवकल्पना के परीक्षण करने के लिए सिधांत का प्रयोग करता है या वह शोध के दौरान सिधांत बनाता है |यदि हम सिद्धांत और शोध के अन्तर्नीहित संबंधो की विशेषता पर गौर करे तो इस निष्कर्ष पर पहुचते है की ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु के सामान हैं जिसमे सिधांत यह निश्चित करता है की किसी शोध की सत्यता को प्रमाणिकता और सावर्भोमिकता की प्राप्ति हेतु किन-किन सिधांत सामाग्री को संग्रहित करने की आवश्यकता है |इस प्रकार सिधान्तो की सत्यता शोध रूपी उस सवारी के सामान है जो एक निश्चित लक्च्या की प्राप्ति हेतु चलता रहता है जब तक की उसकी सत्यता प्रतिस्थापित न हो जाये | इस प्रकार शोध सिधांत की तरफ और  सिद्धांत शोध की तरफ तर्क वितर्क तथा वय्ख्याँ के तहत एक दुसरे की तरफ अग्रसर होते है |
इस प्रकार सिद्धांत  यदि वर्णात्मक ,सम्बन्धात्मक ,विश्लेष्णातमक,समीक्षात्मक  मे विभाजित है तो शोध उन्हें आधार मानकर अन्य तत्वों की सत्यता को निगमन पध्धति के तहत प्रतिरूपित करता है विशेष कर दर्शन ,साहित्य,गणित के शोधों में |
यही नहीं वर्णनात्मक,सम्बन्धात्मक और व्याख्यात्मक सिधान्तों के तहत शोध इनके परिक्छ्णो मे वर्णात्मक सह –सम्बन्ध और प्रायोगिक –शोध रूपी सिधांत को सत्यापित करता है|
वर्णनात्मक सिधांत प्रायः प्राथमिक सिधांत के अंतर्गत आते है |इस तरह के सिधांत प्रायः किसी व्यक्तिगत-व्यक्तित्व,समूह को परिभाषित या किसी परिस्थति और घटना की व्याख्या को वर्णात्मक निरीक्षणो के तहत सत्यापित रुप देने के लिये अन्वेषित किये जाते हैं | अतः वर्णनात्मक सिधांत वर्णनात्मक शोध  के सूछ्म अन्वेषणों के तहत उत्पन्न होता है |साहित्य मे शोध सिधान्तो की महत्ता एक निजता के तौर पर व्याख्यायित की जाती है गुणात्मक सिधांत के तहत आती है क्योंकि साहित्यिक शोध भाव और चिंतन का सुन्दर समन्वय पर आधारित होती है, अतः इनमे वैज्ञानिक सिधान्तो की सार्थकता तो दिखती है लेकिन वह प्रायोगिक न होकर पर्यवेक्षण पर आधरित होती है ,जैसे मेरे शोध मे लेखक के व्यक्तित्व और  कृतित्व की व्याख्या हेतु जिस परिपृक्षा और अन्वेषण सामग्री की आवश्यकता है वह सब एक वैज्ञानिक सिधांत के प्रायोगिक नहीं लेकिन पर्यवेक्षण के सूक्ष्मता से ही संपन्न होगी |हृदय और बुद्धि की सामंजस्यता ही साहित्य  सर्जना की आधरशिला है | साहित्य ह्रदय के परिसर मे रहकर भी बौधिकता व सांस्कृतिकता के जमा को ही पहना नही रहता है वरन दर्शन से भी उसके मान्यताओ को अपने अन्दर अधिग्रहित कर लेता है तथा समाज से रस और लालित्य पूर्ण कृति की व्याख्या प्रस्तुत करता है |

इस प्रकार सिद्धांत  शोध का निर्देशक है तो शोध उसका एक ऐसा अनुशरण-कर्ता जिसे निर्देशक के सुझावों के अतिरिक्त मौलिकता को परिष्कृत और परिमार्जित ढंग से प्रारूप देना है | अतः सिद्धांत शोध की प्रेरणा है जो कि कही न कही शोध की प्रकल्पना की उपज होती है | 

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