गुरुवार, 14 अगस्त 2014

पन्द्रह अगस्त (15|08|2016) पुनःप्रकाशित कुछ नवीनीकरण के बाद)

स्वतंत्र भारत का ७०वा पन्द्रह अगस्त आ गया है फिर भी आजादी बाकी है |
चलो आज करें हम सोच और विचार इस राष्ट्रीय पर्व पर की कौन सी आजादी बाकी है ||

इन 69 सालों में हमने है क्या पाया और क्या है पाना बाकी अभी नहीं तो आजादी अधूरी है |
कहाँ करने हैं सुधार हमें और विकसित पल लाने में क्या-क्या कारज करना बाकी  ||

ऐसा क्यूँ लगता है आज हमें करने हैं काम बहुतेरे,रहने न देंगे इस धरा परा झूठ-फरेब बहुतेरे हैं |
स्वाभाविकता के ऊपर कृत्रिमता का असर कहूँ या फिर जात-पात और धर्मभावों पाखंडी बहुतेरे हैं ||

चलो आओं आज हम सब मिल तिरंगे झंडे को लेकर उत्साही कसमें क्यूँ न खाएं आज  |
जितना भी हो बाजारवाद या फिर साथ में हो  भौतिकतावाद प्रकृति को ना झुकने देंगें ||

चौतरफा प्रगतिशीलता को हम दृढ़तापूर्वक अपनायेंगे चाहें आयें कितने भी सैलाब व् तूफान |
उन्हें भी नतमस्तक करवा लेंगे छेड़ेंगे ऐसी सुर और तान  जिससे कभी हम ना कदमों में ताल बिठा पाये हैं ||

दिल दुःखाना और तोड़ना ये राह कभी न हमको भायी है,हम तो ठहरे सुधारवादी दुश्मन को भी गले लगाया है |
मित्र तो मित्र हैं दुश्मनों को भी हमने गले से लगाया है,तंग राहों को मिटाकर चौराहे में बदलना है ||

नहीं बहकेंगे , नहीं भड़केंगे चाहें जितना भी लो तुम हमको बहला और फुसला | 
अब ना हमको कोई बाँट पायेगा !कोशिश है जो बटा है उसे भी अपने पास बुलाना है !!!

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