यदि शब्द असीमित हैं तो उनके भावों का क्षितिज भी विशाल है |
ये शब्दों का ही जादू है कि सभी अपने-अपने भावों को अपने-अपने ढंग से प्रेषित करते हैं ||
यही नहीं कभी-कभी तो एक ही शब्द के भावों का विस्तार तो घुमा कर रख देता है बड़े-बड़े समीक्षकों को |
परेशानी तो उनकी हैं जिन्हों ने सीधा-सपाट कह तो दिया लेकिन जब उसके तोड़-मरोड़ सामने आता है ||
जो भी हो जैसा भी हो परवाह कभी नहीं है उस शाब्दिक -व्यवहार का जहाँ पहुँचाना इतना अशान नहीं |
सच है न यह बात नहीं तो आज सभी शाब्दिक-भावों को प्रतिरूप देने वाले बड़े-बड़े साहित्यकारों में खड़े होते ||
प्रवाह्मयी धारा को पत्थर का ध्यान कहाँ वो तो उसी गति से प्रवाहित होने का रास्ता बना ही लेती है |
जितने भी रोड़े हों या कोई शाब्दिक प्रहार नहीं रोक सकता है उसको कोई जिसके शब्दों को ध्वनी मिलती अंतर्मन से ||
सच है यदि शब्दों का क्षेत्र असीमित है तो उसके भावों का क्षितिज उससे भी विशाल है |
कहीं किसी के शब्दों का रूप प्रेमी-युगलों को माध्यम बनाता है तो कहीं रण-योद्धाओं को ||
कहीं यही शब्द अपने भावों को व्यक्त करने के लिए व्यंग्यात्मकता रूपी तीर को धारण करते हैं |
जो भी है जैसा भी है रोमांस से लेकर रोअमंचित करने वाले शब्द के रूप की कोई सीमा नहीं है तो उससे उत्पन्न भावोद्गार उससे भी विशाल है ||
ये शब्दों का ही जादू है कि सभी अपने-अपने भावों को अपने-अपने ढंग से प्रेषित करते हैं ||
यही नहीं कभी-कभी तो एक ही शब्द के भावों का विस्तार तो घुमा कर रख देता है बड़े-बड़े समीक्षकों को |
परेशानी तो उनकी हैं जिन्हों ने सीधा-सपाट कह तो दिया लेकिन जब उसके तोड़-मरोड़ सामने आता है ||
जो भी हो जैसा भी हो परवाह कभी नहीं है उस शाब्दिक -व्यवहार का जहाँ पहुँचाना इतना अशान नहीं |
सच है न यह बात नहीं तो आज सभी शाब्दिक-भावों को प्रतिरूप देने वाले बड़े-बड़े साहित्यकारों में खड़े होते ||
प्रवाह्मयी धारा को पत्थर का ध्यान कहाँ वो तो उसी गति से प्रवाहित होने का रास्ता बना ही लेती है |
जितने भी रोड़े हों या कोई शाब्दिक प्रहार नहीं रोक सकता है उसको कोई जिसके शब्दों को ध्वनी मिलती अंतर्मन से ||
सच है यदि शब्दों का क्षेत्र असीमित है तो उसके भावों का क्षितिज उससे भी विशाल है |
कहीं किसी के शब्दों का रूप प्रेमी-युगलों को माध्यम बनाता है तो कहीं रण-योद्धाओं को ||
कहीं यही शब्द अपने भावों को व्यक्त करने के लिए व्यंग्यात्मकता रूपी तीर को धारण करते हैं |
जो भी है जैसा भी है रोमांस से लेकर रोअमंचित करने वाले शब्द के रूप की कोई सीमा नहीं है तो उससे उत्पन्न भावोद्गार उससे भी विशाल है ||
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