साहित्य समाज का पथ-प्रदर्शक के साथ-साथ उसका प्रतिबिम्ब भी है | हम सभी इससे अवगत हैं की देश हो या हमारा समाज सभी के अन्दर एक अभिव्यक्ति छुपी होती है जो उन्हें परिस्थितियों के तहत ही व्यक्त करने हेतु उद्वेलित करती रहती है जो साहित्य का रूप धारण करती हुयी या उद्बोद्धित करती है |कभी-कभी लगता है कि इन सबके बीच राजनैतिक परिस्थितियाँ ही सहित्यिक गतिविधियों को करती हैं | हिंदी साहित्य में आरम्भ से ही वास्तविक जीवन को व्याख्यायित करने वाले या यूँ कह लें कि समाज में व्याप्त वर्ग-संघर्ष को चित्रांकित करते हुए भाव को इसका विषय-क्षेत्र माना गया है |सर्वप्रथम हम हिंदी साहित्य पर अपनी दृष्टि को दौड़ाते हैं तो इस उक्ति को चरितार्थ पाते हैं | हिंदी साहित्य का इतिहास सबसे पुराना साहित्य है | जिसका श्रीगणेश आदिकाल और वीरगाथा काल के नाम से विख्यात है | वैसे तो नाम कई हैं किन्तु आदिकाल और वीरगाथा काल से हमसब चिरपरिचित हैं जो कि इतिहास और सर्वाधिकहिंदी साहित्य के इतिहासकारों के सन्निकट है | अब हम इस नामकरण की विख्याति को व्यख्यायित करना चाहेंगे | सातवीं-आठवीं शताब्दी पर आधारित हिंदी साहित्य का प्रथम काल को राजनीतिक -परिदृष्यों ने सर्वाधिक प्रभावित किया है | हर्षवर्धन ने सन् ६०६ ई. में अपने राजगद्दी को अंगीकार किया जो कि पहले से विश्रृंखल और असंतुलित थी | लेकिन हर्षवर्धन की योग्यता ने जहाँ उसे एकसूत्रता में बांधा वहीं विरोधियों पर भी साहसिकता के बल पर विजय पाई |लेकिन इनकी म्रत्यु के बाद के शासकों को लगातार युद्धों में संलग्न रहना पड़ा | जिनमें अजमेर के चौहान , कन्नौज के गढ़वाल और मालवा के परमार को अपनी राज-प्रतिष्ठा को हासिल करने में सफलता मिली| इनका विवरण देने के पीछे मुख्य कारण यही है कि हिंदी साहित्य का प्रारंभिक काल की रचनाओं में राजपूतों के उदय के कारण प्रमुख स्थान मिला | जिसमें रासो साहित्य के साथ अन्य शासकों की वीरगाथा को उद्बोद्धित करती हैं | अतः इसे साहित्य में राजनीति की प्रमुखता को हम महसूस करते हैं |
आब हम हिंदी साहित्य के इतिहास के द्वितीय कल भक्तिकाल को अवलोकित करें तो पाते हैं कि सन् १२०६से १२९० ई. का इतिहास दिल्ली-सल्तनत का उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था | जिसमें गुलाम वंश से लेकर खिलजी तद्प्रांत तुगलक वंश सैयद वंश और लोदी वंश के रूप में हुआ | इसके पश्चात् शुरुआत होता है मुगलों के शासनकाल का || यह काल यदि देखा जाये तो मुस्लिमों के आक्रमणों से भरपूर था जिसके कारण इस काल में रचे जाने वाले साहित्य का मूल आधार भक्ति -भावपूर्ति को व्याख्यायित करती है |
फिर आता है रीतिकाल जिसमें मुगलों का समाप्ति और सामंतों की उत्पत्ति के कारण भक्तिकाल में श्रृगार रस और नायिका भेद को बढ़ावा मिला |
आधुनिक काल में बुद्धिजीवी वर्ग ने अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए साहित्य को विस्तार ही नहीं दिया वरन साधनों की भी अभिवृद्धि की | जिसमें पत्र-पत्रिकाओं के तहत भी अपने विचारों को पहुचाने के साथ-साथ आज तो इंटरनेट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को भी अपना जरिया बाया जा रहा है | आज की राजनीतिक-गतिविधियों से साहित्यकार आहत भी होता है तो कभी-कभी उसे एक आशा की किरण भी अपने रचनाओं में अभिव्यक्त करने हेतु उत्त्प्रेरित करती हुयी उसकी रचनाओं में शब्दांकित होती हैं | देश और संसार में होने वाले क्रन्तिकारी बदलाव साहित्य की अमूल्य देन है इसे नाकारा नहीं जा सकता है |साहित्य का क्षेत्र असीमित है जिसमें राजनीति उसका अभिन्न अंग है |
आब हम हिंदी साहित्य के इतिहास के द्वितीय कल भक्तिकाल को अवलोकित करें तो पाते हैं कि सन् १२०६से १२९० ई. का इतिहास दिल्ली-सल्तनत का उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था | जिसमें गुलाम वंश से लेकर खिलजी तद्प्रांत तुगलक वंश सैयद वंश और लोदी वंश के रूप में हुआ | इसके पश्चात् शुरुआत होता है मुगलों के शासनकाल का || यह काल यदि देखा जाये तो मुस्लिमों के आक्रमणों से भरपूर था जिसके कारण इस काल में रचे जाने वाले साहित्य का मूल आधार भक्ति -भावपूर्ति को व्याख्यायित करती है |
फिर आता है रीतिकाल जिसमें मुगलों का समाप्ति और सामंतों की उत्पत्ति के कारण भक्तिकाल में श्रृगार रस और नायिका भेद को बढ़ावा मिला |
आधुनिक काल में बुद्धिजीवी वर्ग ने अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए साहित्य को विस्तार ही नहीं दिया वरन साधनों की भी अभिवृद्धि की | जिसमें पत्र-पत्रिकाओं के तहत भी अपने विचारों को पहुचाने के साथ-साथ आज तो इंटरनेट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को भी अपना जरिया बाया जा रहा है | आज की राजनीतिक-गतिविधियों से साहित्यकार आहत भी होता है तो कभी-कभी उसे एक आशा की किरण भी अपने रचनाओं में अभिव्यक्त करने हेतु उत्त्प्रेरित करती हुयी उसकी रचनाओं में शब्दांकित होती हैं | देश और संसार में होने वाले क्रन्तिकारी बदलाव साहित्य की अमूल्य देन है इसे नाकारा नहीं जा सकता है |साहित्य का क्षेत्र असीमित है जिसमें राजनीति उसका अभिन्न अंग है |
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