धैर्य और धीरज तो रखना ही पड़ेगा | आज सभी इतनी तेज रफ्तार में हैं कि प्रत्येक आवश्यकता की वस्तुएँ जादुई छड़ी के तहत ही चाहिए | किचन में रेडी टू इट हो ,सफर में फ्लाईट हो और मार्क्स लाने के लिए गहन अध्ययन से ज्यादा सटीक कुंजी चाहिए | किन्तु जीवन सजी-संवरी और सम्पूर्णता की प्रतीक हो | अच्छे दिन यदि आप ने कहा है तो साठ - दिन किसी को सब्र ही नहीं साठ महिना तो पांच साल में पूरा होगा | अब तो डर लगने लगा है किसी शब्द को प्रतिरूप देने में भी | कब कौन सा शब्द का समूह मेरे लिए भी न मुसीबत बन जाये | खैर ! लेखनी को रुकना नहीं चाहिए अन्यथा निश्छलता और सत्य को दफनाना पङ जायेगा | अदि आपकी आवाज अन्तर्मन् की है तो उसे प्रवाहित कर देना चाहिए अन्यथा विचारे उस शब्द का प्रतिरूप में ढलने के पहले ही खत्म हो जायेगा | साहित्य और साहित्यकारों को हम सबका शुक्रगुजार होना चाहिए जो आधार बन कर हमारे शब्दों सजाने चले आते हैं | कवीर जी के इस दोहे को आज मैं अपने शीर्षक के लिए ढाल बना अपनी अभिव्यक्तियों को सजाना चाहती हूँ |
" धीरे-धीरे रे मन धीरे सब कुछ होय , माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय |"
वही बात बजट से लेकर हमारे दैनिक चर्या में शामिल छोटी से छोटी प्रत्येक क्षण और वांछित तथ्यों के लिए सटीक बैठती हैं | हम थक जाते हैं उब जाते हैं लेकिन शांत हो कर वक्त की प्रतिक्षा नहीं कर पातें हैं |
शिक्षण , शिक्षक और शिक्षार्थी सभी अपनी धुन में हैं | किसी को इस प्रतियोगी युग जड़ को समझाने की आवश्यकता ही नहीं पङ रही है | यदि विस्तार को लेकर चलें तो सिलेबश पूरा नहीं होगा यही नहीं शिक्षार्थी में भी तो रूचि होनी चाहिए उस पाठ विस्तार को जानने के लिए | ज्ञानी गुरु विचारा चुपचाप छात्रोपयोगी पद्धतियों पर ही चलना सरल समझता है |
सब ठीक है इन लहरों के बीच टापू का भी अपना आकर्षित योगदान होता है |
" धीरे-धीरे रे मन धीरे सब कुछ होय , माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय |"
वही बात बजट से लेकर हमारे दैनिक चर्या में शामिल छोटी से छोटी प्रत्येक क्षण और वांछित तथ्यों के लिए सटीक बैठती हैं | हम थक जाते हैं उब जाते हैं लेकिन शांत हो कर वक्त की प्रतिक्षा नहीं कर पातें हैं |
शिक्षण , शिक्षक और शिक्षार्थी सभी अपनी धुन में हैं | किसी को इस प्रतियोगी युग जड़ को समझाने की आवश्यकता ही नहीं पङ रही है | यदि विस्तार को लेकर चलें तो सिलेबश पूरा नहीं होगा यही नहीं शिक्षार्थी में भी तो रूचि होनी चाहिए उस पाठ विस्तार को जानने के लिए | ज्ञानी गुरु विचारा चुपचाप छात्रोपयोगी पद्धतियों पर ही चलना सरल समझता है |
सब ठीक है इन लहरों के बीच टापू का भी अपना आकर्षित योगदान होता है |
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