बुधवार, 25 जून 2014

कविता ऐसी हो...!

कविता ऐसी हो जिसमें कवि का रुदन नहीं उम्मीद हो |
रुदन से आह की महक आती है जो कवि को कमजोर बताती है ||

जिसके शब्द और भाव हमें लुभाएँ ही नहीं वर्ण हौशले को भी बढ़ाएं |
हौशला जो शब्द और भाव से ही बुलंद हो जाये तो कवि को प्रेरणादायी बताती हैं ||

कविता में उल्लास भी हो और उमंग भी हो तो उम्मीद को लग जाते हैं पंख |
जब उम्मीद को पंख रूपी आधार मिल जाये तो कवि के शब्द दिखा देते हैं पंथ ||

जब पाठक को पंथ दिख पड़ता है तो आशां हो जाते हैं उसके लक्ष्य के मार्ग |
यहाँ कवि अब केवल पाठक के लिए कवि न रह कर बन जाता है एक पथप्रदर्शक ||





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