नींव का पत्थर बनने के लिय बहुत आवश्यक है कि उस व्यक्ति में इतनी क्षमता हो की अपनी पार्टी रूपी ईमारत की दृढ़ता के लिए नींव के सतह में दब जाये | हाँलाकि ऐसी बात नहीं है कि नींव की सतही-पत्थर की महत्ता को हम नजरंदाज कार देते हैं लेकिन जिस समय वह उस साथ पर कुर्बान होता है उस समयावधि में कोई उसे नहीं पढ़ पाता है | फिर भी नोंव की पुख्ता पर ही ईमारत की मजबूती टीकी होती है | उसी तरह से कोई भी राजनीतिक दल हो या संगठन उन्हें यह समझन पड़ेगा कि महत्वकांक्षाओं की बलि देनी ही पड़ती है नियोजित संगठन रूपी ईमारत की दृढ़ता तथा खूबसूरती हेतु | यदि सभी ईमारत की सजावट ही बनना चाहेंगे तो नींव की सतही पत्थर कौन बनेगा | इसके अतिरिक्त यह भी सार्वभौमिक सत्य है कि बिना साथी मजबूती के कोई ईमारत या संगठन चिरस्थायी नहीं बन सकता है | जैसे ईमारत की सुन्दरता और दृढ़ता में प्रत्येक छोटी से छोटी दिखने वाली वस्तु की महत्ता होती है( चाहें बालू हो सीमेंट हो या उन समग्र्यों को धोने वाला मजदुर या कारीगर ) ठीक उसी तरह एक संगठन या राजनीतिक दल में भी सभी योगदानकर्ताओं को तरजीह दी जनी चाहिए | बल्कि मेरे ख्याल से चुपचाप दबे हुए नींव का पत्थर ईमारत की सजावट हेतु रंग-रोगन से ज्यादा बहुमूल्य हैं जिसने अपने आपको या अपने अस्तित्व को नाम और प्रतिभाशाली ख़िताब की ललक को तिलांजलि ख़ुशी-ख़ुशी दे दी है | यदि उसने सतह पर चुपचाप दब जाना स्वीकार न किया होता तो आज भी उसे कोई याद नहीं रखता |नींव जीतनी पुख्ता होगी ईमारत की दृढ़ता भी उतनी ही चिरस्थायी होगी| | जरुरत है सर्वप्रथम अपनी जड़ों पर ध्यान देने की अन्यथा चिरस्थायी और दृढ़ता तो दूर उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा | ये बातें सार्वभौमिक और सर्वकालिक और सार्वजानिक रूप से सत्य है और मेरा मानना है की इससे हम सभी परिचित और अवगत भी होते रहते हैं |
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