मौन-शब्द यानि जब उन्हें कोई प्रतिरूप या यूँ कह लें कि इन्हें कोई प्रारूप नहीं मिला |
लेकिन मौन होने का कारण भी उनकी (शब्दों)मनमानी ही है जिसमें कोई समुचित समाधान न मिला ||
क्या करू ?नहीं लिखना अपनी संवेदनाओं को जिसका कोई आधार ही नहीं |
क्या होगा लिखकर जिसका कोई समुचित और संशोधित उपाय या समाधान ही नहीं ||
पता है हम सबको क्या किया जाये और कैसे-कैसे करना है सभी समस्याओं का समाधान ?
लेकिन एक उचित और अनुचित के भाव के तहत सटीक उपाय और समाधान नदारद है ||
उस समय अंतर्मन और समझदार दिमाग अपनी रंगत में आकर शब्दों को प्रतिरूप देने नहीं देते हैं |
कहतें हैं मत ढालो कोई फायदा नहीं !ढालना ही है तो सटीक और उचित प्रारूप के तहत नियम में ढालो ||
उस समय मै नादान और अनभिज्ञता के अंतर्गत् शब्दों के उलझन को मौन रहने का इशारा भर कर देती हूँ |
लेकिन बकबक करने की आदत हमें मौन रहने ही कहाँ देती है, और क्यूँ रहूँ मैं मौन जब शब्द रूपी साथी का हो साथ ||
ठीक है कोई सटीक उपाय और नियम तथा सिद्धांतों के प्रारूपों से हूँ मै अनभिग्य |
कह लेने दो या यूँ कहूँ सज जाने दो इन सब्दों को शायद इनमें भी छिपे हों कोई गुण ||
बन ठन कर ,सोच-समझकर नहीं आतें हैं मेरे भाव रूपी शब्द तो क्या हुआ ?
ध्यान से देखती हूँ ,फिर सोचती हूँ तथा सुलझाने का प्रयास भर हैं ये मेरे मौन -शब्द ||
लेकिन मौन होने का कारण भी उनकी (शब्दों)मनमानी ही है जिसमें कोई समुचित समाधान न मिला ||
क्या करू ?नहीं लिखना अपनी संवेदनाओं को जिसका कोई आधार ही नहीं |
क्या होगा लिखकर जिसका कोई समुचित और संशोधित उपाय या समाधान ही नहीं ||
पता है हम सबको क्या किया जाये और कैसे-कैसे करना है सभी समस्याओं का समाधान ?
लेकिन एक उचित और अनुचित के भाव के तहत सटीक उपाय और समाधान नदारद है ||
उस समय अंतर्मन और समझदार दिमाग अपनी रंगत में आकर शब्दों को प्रतिरूप देने नहीं देते हैं |
कहतें हैं मत ढालो कोई फायदा नहीं !ढालना ही है तो सटीक और उचित प्रारूप के तहत नियम में ढालो ||
उस समय मै नादान और अनभिज्ञता के अंतर्गत् शब्दों के उलझन को मौन रहने का इशारा भर कर देती हूँ |
लेकिन बकबक करने की आदत हमें मौन रहने ही कहाँ देती है, और क्यूँ रहूँ मैं मौन जब शब्द रूपी साथी का हो साथ ||
ठीक है कोई सटीक उपाय और नियम तथा सिद्धांतों के प्रारूपों से हूँ मै अनभिग्य |
कह लेने दो या यूँ कहूँ सज जाने दो इन सब्दों को शायद इनमें भी छिपे हों कोई गुण ||
बन ठन कर ,सोच-समझकर नहीं आतें हैं मेरे भाव रूपी शब्द तो क्या हुआ ?
ध्यान से देखती हूँ ,फिर सोचती हूँ तथा सुलझाने का प्रयास भर हैं ये मेरे मौन -शब्द ||
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