रविवार, 22 जून 2014

मोदी की कड़वी दवा...!

लोकतंत्रीकरण का  सम्मान करते हुए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कड़वी दवा हमसबको प्रेषित कर रहें हैं उससे हो सकता है अभिवादन की जगह उन्हें कोसा जाये और कोसा भी जा रहा है लेकिन यहीं तो फर्क है, ' चिरस्थायी से लाभान्वित परियोजनाओं' को तरजीह देते हुए एस बात को अनदेखा कार देना कि हसे सभी खुश हैं की नहीं | उन्हेंपरिस्थितियाँ न तो ४९ डेज की योजना बनानी हैं न तो रबड़-स्टम्प की तरह  अपनी योजनाओं को बलि चढ़ा देना | इसे हम सामान्य भाषा और लहजे में इस तरह समझ सकते हैं कि कभी-कभी घर का मुखिया अपनी योजनाओं को सुनाता है तो परिवार का नादान सदस्य दूरगामी परिणामों की अवहेलना करते हुए क्षणिक-सुख-सुविधाओं की माँग कार बैठता है ,लेकिन समझदार -मुखिया इन विरोधों को सकुशलता से उन्हें भी अपने पक्ष में कार लेता है |घाव नासूर का रूप न धारण करने पाए इसके लिए कड़वी दवा ही लाभकारी होगी | जब घाव सही हो जायेगा तो खुद ब  खुद वः कड़वी दवा ही अमृत की तरह हो जाएगी |
चतुर्दिक- परिस्थितियाँ भले ही (इराक और मानसून) लोगों को उकसा रहीं हों लेकिन यह भी सत्य है कि प्रतिकूल- परिस्थितियाँ ही अनुकूल योजनाओं का संचार करती हैं | एक तथ्य अब स्पष्ट है कि जनता ने जो अपने मुखिया को इतनी सशक्तता दे रखी है की उसे देश की अर्थव्यवस्था और इसके चतुर्दिक विकास हेतु जीतनी भी कड़वी दवा हो हम सशर्त अधिग्रहित करने को तैयार हैं | शर्त यही है की दूरगामी परिणामों से भी जनता को अवगत कराया जाये | फिलहाल तो यह बहुत जल्दी है कहना  लेकिन संभवतः हमारे प्रधानमंत्री और उनके प्रतिनिधि-मंडलों द्वारा इन कड़वी दवाओं का परिणाम भी सुखद और लाभकारी होगा | फिर भी हमारे प्रधानमंत्री जी को इतना तो ध्यान रखना ही पड़ेगा कि सभी इलाजों के लिए कड़वी दवा का ही इस्तेमाल न करें कभी-कभी होमियोपैथ की मीठी गोलियों से भी इन बिमारियों (देश-हित हेतु जो भी आवश्यक हो ) को दूर करने की कोशिश की जाये तो धीरे-धीरे ही सही लेकिन जड़ से उस बीमारी को दूर किया जा सकता है |
क्यूँ बिचारी गरीब जनता को ही झेलना पड़ता  है सारी उलझनों और महंगाई का भार.....!!! कोई तो समझे और सुने इनकी पुकार और भाव को |

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