आज आसमान पर नजर दौड़ाई तो देखी की हमारा नीला आसमान भी धूमिल हो गया है |
क्यों इसे किसने धूमिल बनाया है और इसके चमकते हीरे भी मुझे क्यूँ नजर नहीं आ रहे हैं ||
इसी सोच में पड़ी हुई उसे निहार रही थी कि आसमान की बुलंदियों सा उपमा कैसे दिया जायेगा |
इसने भी तो अपने रंग खुद बदले हैं या लोगों ने इसे मजबूरन ऐसा बना दिया है अपने विकसित रफ्तार में ||
उफ्फ... हमारा असीमित क्षितिज भी नहीं बचा इस बदलाव में !इसे किसने बदला ढूँढना चाहती हूँ |
बदलाव या परिवर्तन बुरा नहीं है बशर्ते तुम्हें बदरूप और दूसरों की शांति को भी न भंग करना पड़े ||
गहन अँधेरे में उस धूमिल आसमान में झिलमिल तारों को ढूँढ रही थी और ढूँढ रही थी अपना नीला आसमान |
उसी ने मानों एक आवाज लगायी किस दुनिया में हो जब मुझे कोई परवाह नहीं तो तुम हो रही क्यूँ हैरान हो ||
वो! तो बात ये है इसने अपने रंग नहीं बदले हैं, अरे! आज मैं कहाँ खड़ी हूँ पता भी है मुझे ये महानगर है |
जहाँ लोगों को प्राकृतिक शीतलता नहीं एयरकंडीशन चाहिए ,बड़ी-बड़ी उद्योग तो हों लेकिन हरियाली नहीं ||
गार्डन बनाने की जगह अपार्टमेंट चाहिए ,खुले आँगन की जगह छोटी बालकनी को भी स्टोर रूम बनाना है |
तो तुम्हें मै नीला कैसे दिखूँगा, मै आज भी वही हूँ ! धूमिल चादर तुम्हारे शहरों ने मुझे शौंप दिया है !!
फिर भी मै हैरान नहीं ,परेशान नहीं तो तुम आज इतनी उदास क्यूँ हो ??
तुम्हें नहीं पता आज सभी कितनी रफ्तार में हैं मुझे देखने का समय नहीं ||
तुमसे बस इतना ही कहता हूँ मस्त रहो जीना सीखो और हर हाल में खुश रहो |
इतनी हैरानी से मुझे मत देखो कोशिश करो तो बस इतना कि प्रदुषण से बची रहना और सबको बचाना ||
क्यों इसे किसने धूमिल बनाया है और इसके चमकते हीरे भी मुझे क्यूँ नजर नहीं आ रहे हैं ||
इसी सोच में पड़ी हुई उसे निहार रही थी कि आसमान की बुलंदियों सा उपमा कैसे दिया जायेगा |
इसने भी तो अपने रंग खुद बदले हैं या लोगों ने इसे मजबूरन ऐसा बना दिया है अपने विकसित रफ्तार में ||
उफ्फ... हमारा असीमित क्षितिज भी नहीं बचा इस बदलाव में !इसे किसने बदला ढूँढना चाहती हूँ |
बदलाव या परिवर्तन बुरा नहीं है बशर्ते तुम्हें बदरूप और दूसरों की शांति को भी न भंग करना पड़े ||
गहन अँधेरे में उस धूमिल आसमान में झिलमिल तारों को ढूँढ रही थी और ढूँढ रही थी अपना नीला आसमान |
उसी ने मानों एक आवाज लगायी किस दुनिया में हो जब मुझे कोई परवाह नहीं तो तुम हो रही क्यूँ हैरान हो ||
वो! तो बात ये है इसने अपने रंग नहीं बदले हैं, अरे! आज मैं कहाँ खड़ी हूँ पता भी है मुझे ये महानगर है |
जहाँ लोगों को प्राकृतिक शीतलता नहीं एयरकंडीशन चाहिए ,बड़ी-बड़ी उद्योग तो हों लेकिन हरियाली नहीं ||
गार्डन बनाने की जगह अपार्टमेंट चाहिए ,खुले आँगन की जगह छोटी बालकनी को भी स्टोर रूम बनाना है |
तो तुम्हें मै नीला कैसे दिखूँगा, मै आज भी वही हूँ ! धूमिल चादर तुम्हारे शहरों ने मुझे शौंप दिया है !!
फिर भी मै हैरान नहीं ,परेशान नहीं तो तुम आज इतनी उदास क्यूँ हो ??
तुम्हें नहीं पता आज सभी कितनी रफ्तार में हैं मुझे देखने का समय नहीं ||
तुमसे बस इतना ही कहता हूँ मस्त रहो जीना सीखो और हर हाल में खुश रहो |
इतनी हैरानी से मुझे मत देखो कोशिश करो तो बस इतना कि प्रदुषण से बची रहना और सबको बचाना ||
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