माँ...माँ होती है उसके लिए कोई भी शाब्दिक व्याख्या नहीं है ,
जितना भी कह लो जितना भी लिख लो लगता है अधुरा है |
त्याग दया, मोह, माया और ममता की प्रतिमूर्ति होती है "माँ",
खुद तो सहनशीलता के पथ पर चलती ही हैं और हमें भी प्रेरित करती रहती है "माँ"|
"माँ" शब्द की ताकत तो देखो खुद को मर-मिटने के लिए तत्पर रहती है "माँ"
अपने जैसे -तैसे भी गुजर करने के बाद भी संतान के लिए महान बनाने और सुख की सपने बुनती रहती है "माँ"|
जितना भी कह लो जितना भी लिख लो लगता है अधुरा है |
त्याग दया, मोह, माया और ममता की प्रतिमूर्ति होती है "माँ",
खुद तो सहनशीलता के पथ पर चलती ही हैं और हमें भी प्रेरित करती रहती है "माँ"|
"माँ" शब्द की ताकत तो देखो खुद को मर-मिटने के लिए तत्पर रहती है "माँ"
अपने जैसे -तैसे भी गुजर करने के बाद भी संतान के लिए महान बनाने और सुख की सपने बुनती रहती है "माँ"|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें