रविवार, 11 मई 2014

"माँ "

माँ...माँ होती है उसके लिए कोई भी शाब्दिक व्याख्या नहीं है ,
जितना भी कह लो जितना भी लिख लो लगता है अधुरा है |

त्याग दया, मोह, माया और ममता की प्रतिमूर्ति होती है "माँ",
खुद तो सहनशीलता के पथ पर चलती ही हैं और हमें भी प्रेरित करती रहती है "माँ"|

"माँ" शब्द की ताकत तो देखो खुद को मर-मिटने के लिए तत्पर रहती है "माँ"
अपने जैसे -तैसे भी गुजर करने के बाद भी संतान के लिए महान बनाने और सुख  की सपने बुनती रहती है "माँ"|

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