बात करनी ही है या यूँ कह लें कि बहस छेड़नी ही है तो सटीक मुद्दों को उठाओ |
कोण कितना पढ़ा है किसने हलफनामें में क्या लिखा ये भी कोई मुद्दा है ||
क्यूँ न संविधान में ही ऐसा संशोधन करें कि राजनीतिक नेताओं के लिए भी उम्र और डिग्री दोनों हो |
और रही बात कि कौन स्नातक है और कौन इंटरमीडिएट फर्क क्या पड़ता इन डिग्रियों से !!
कितने ही डिग्रीधारी आज असफल हैं , उन्हें कोई स्थान नहीं मिलता ,लोग इसपर चर्चा क्यूँ नहीं करते है |
हमें तो स्मृति ईरानी पर फक्र होना चाहिए की बिना किसी पूर्व राजनीतिक पीढ़ी के ही आज वे कैबिनेट मंत्री हैं |
उन्होंने जिस तरह से अमेठी में पत्रकारों से लेकर अपने दावेदारों को नाको चना चबवाया वो क्या उत्तम नहीं है
खैर ये चर्चा का सवाल ही नहीं है कि वे स्नातक नहीं है इसलिए मानव-संसाधन- मंत्री नहीँ हो सकती हैं ||
मुद्दें तो हमारे देश में बहुत हैं जरुरत है उन पर एक सार्थक बहस छेड़ने और सलुशन निकालने की |
वैसे भी आज यदि हमारे देश में डिग्रीधारियों की ही पुछ होती तो आज इतनी बेरोजगारी ही नहीँ पनपती ||
कोण कितना पढ़ा है किसने हलफनामें में क्या लिखा ये भी कोई मुद्दा है ||
क्यूँ न संविधान में ही ऐसा संशोधन करें कि राजनीतिक नेताओं के लिए भी उम्र और डिग्री दोनों हो |
और रही बात कि कौन स्नातक है और कौन इंटरमीडिएट फर्क क्या पड़ता इन डिग्रियों से !!
कितने ही डिग्रीधारी आज असफल हैं , उन्हें कोई स्थान नहीं मिलता ,लोग इसपर चर्चा क्यूँ नहीं करते है |
हमें तो स्मृति ईरानी पर फक्र होना चाहिए की बिना किसी पूर्व राजनीतिक पीढ़ी के ही आज वे कैबिनेट मंत्री हैं |
उन्होंने जिस तरह से अमेठी में पत्रकारों से लेकर अपने दावेदारों को नाको चना चबवाया वो क्या उत्तम नहीं है
खैर ये चर्चा का सवाल ही नहीं है कि वे स्नातक नहीं है इसलिए मानव-संसाधन- मंत्री नहीँ हो सकती हैं ||
मुद्दें तो हमारे देश में बहुत हैं जरुरत है उन पर एक सार्थक बहस छेड़ने और सलुशन निकालने की |
वैसे भी आज यदि हमारे देश में डिग्रीधारियों की ही पुछ होती तो आज इतनी बेरोजगारी ही नहीँ पनपती ||
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