साहित्य के बहुमूल्य खजाने को समझने के लिए बहुत जरुरी है कि गोते लगायें अन्यथा हम कहीं वंचित न रह जाएँ इससे प्राप्त होने वाले अमिट और अनंत सुखानुभूति से | हम सभी साहित्य के विस्तृत क्षितिज से तो अवगत हैं लेकिन इसे अवलोकित करने की रूचि को विस्तार देने में असमर्थ हैं |फिरभी इसकी विशालता तो देखो , यह हमसे कभी दूर प्रतीत ही नहीं होता है | कहने का तात्पर्य है की यदि जीवन है तो साहित्य है ही इसे नकार नहीं सकते हैं | यह मानवीय जीवन को सजीवता और जीवन्तता से ओतप्रोत रखने हेतु कभी हमारे सामने काव्य को लेकर प्रस्तुत हो जाता है तो कभी हमारे मस्तिष्क को सक्रियता प्रदान करना होता है तो यह गद्य विधा से निबंध को चुन लेता है , यही नहीं अब तो यह सोच के बहर है कि वह कौन सा विषय-क्षेत्र है जो साहित्य के पकड़ में न हो ? फिर भी हम मानव इसकी विशालता को वो सम्मान क्यूँ नहीं दे पाते हैं ? संभवतः यह सांसारिक गतिविधियाँ ही कुछ ऐसी हैं कि उत्तमता को हम मानते तो हैं लेकिन स्वीकार करने में हिचकते हैं |
जैसे हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और अंगीकार करने में शर्म है या मज़बूरी , क्या शब्द दूँ मुझे नहीं सूझ रहा है |
कभी-कभी ऐसा लगता है कि अंग्रेज तो यहं से चले गए किन्तु देश ही नहीं बटा वरन उन्होंने हमारी भाषा को भी छल लिया | हालांकि गैरों को हम दोष क्यूँ दें ? आज भी हमारा साहित्य और हिंदी भाषा कितनी उन्नत है !,जरुरत है सोचने की | अन्यथा बहुत विलम्ब हो जायेगा | जीवनदायनी की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए | उन्नतशील पथ और परदेश भ्रमण हम कितने भी कर लें अपनी संस्कृति और परम्परागत गतिविधियों को त्वरित ही रखना चाहिए | हमें ध्यान रखना है कि इसकी अर्थी उठाने की नौबत कहीं हमारे सामने न आ जाये |
जैसे हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और अंगीकार करने में शर्म है या मज़बूरी , क्या शब्द दूँ मुझे नहीं सूझ रहा है |
कभी-कभी ऐसा लगता है कि अंग्रेज तो यहं से चले गए किन्तु देश ही नहीं बटा वरन उन्होंने हमारी भाषा को भी छल लिया | हालांकि गैरों को हम दोष क्यूँ दें ? आज भी हमारा साहित्य और हिंदी भाषा कितनी उन्नत है !,जरुरत है सोचने की | अन्यथा बहुत विलम्ब हो जायेगा | जीवनदायनी की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए | उन्नतशील पथ और परदेश भ्रमण हम कितने भी कर लें अपनी संस्कृति और परम्परागत गतिविधियों को त्वरित ही रखना चाहिए | हमें ध्यान रखना है कि इसकी अर्थी उठाने की नौबत कहीं हमारे सामने न आ जाये |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें