एक बात तो तय है की सोलह्वी लोकसभा चुनाव में जहाँ एक तरफ सबसे लोकप्रिय राजनीतिक दल कमल चिन्ह लिए हुए सशक्तिकरण के प्रतीक नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित करने के उपरांत जन-सैलाब का अपने उफान पर चढने के पीछे ध्यान दिया जाये तो आप राजनीतिक दल के (द्वारा विधान-सभा दिल्ली में मिली अप्रत्याशित सफलता ) नेताओं द्वारा सत्तारूढ़ दल पर आरोप और निशाना साधने के बजाय विपक्ष-दल को अपना मुख्य मुद्दा बनाना ,प्रमुख कारणों में से एक है | क्यूँ केजरीवाल जी ने मात्र ४९ दिन में ही इस्तीफा देकर दिल्ली राज्य को अनाथ कर दिया | शायद आप की सोच में जोश तो है लेकिन परिपक्वता की कमी समझा जाये या प्रधानमंत्री पद का लोभ (अति महत्वकांक्षी) | जब एकबार विश्वासमत पास हो गया तो ६ महीने तक उन्हें कोई हटा नहीं सकता था | फिर क्यूँ नहीं उन्होंने अपने मुद्दों को साकार कर दिखाया जिसके बलबूते पर उन्होंने शिला दीक्षित को पराजित किया | गुजरात में जाकर मोदी जी के लिए एक तरह से वैसा ही हथकंडा अपनाना चाहा है और चले गए बनारस दावेदारी करने | मुझे योगेंद जी द्वारा यह कहना बहुत उचित लगता है और शायद है भी कि ( दिल्ली-विधान सभा चुनाव के सर्वे-विश्लेष्ण के दौरान) पहला चुनाव होता है हारने के लिए ,दूसरा हराने के लिए और और तीसरा सत्ताधारी के लिए | उनके शब्द अलग हो सकते हैं लेकिन उस वाक्य के भाव और सार यही थे |
यह तो हुआ सबसे लोकप्रिय दल और चर्चित दल की बातें | कटाक्ष वाक्यों के धार पर आने वाले दल के बारे में बस यही कहा जा सकता है कि परिवर्तन जरुरी है जिससे सत्तारूढ़ दल और आने वाले दल को भी अपनी खामियों को तरजीह दी जाये वरन जनतान्त्रिक गतिविधियों का मतलब ही नहीं रह जायेगा और वह एकात्मक शासनकाल के अंतर्गत आ जायेगा |
यह तो हुआ सबसे लोकप्रिय दल और चर्चित दल की बातें | कटाक्ष वाक्यों के धार पर आने वाले दल के बारे में बस यही कहा जा सकता है कि परिवर्तन जरुरी है जिससे सत्तारूढ़ दल और आने वाले दल को भी अपनी खामियों को तरजीह दी जाये वरन जनतान्त्रिक गतिविधियों का मतलब ही नहीं रह जायेगा और वह एकात्मक शासनकाल के अंतर्गत आ जायेगा |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें