सभी परेशान हैं इस भीड़ में अपनी एक पहचान और वजूद को ढूढने के लिए ,
उसी भीड़ में मैं भी एक कोने में खड़ी पहचान तो नहीं हाँ लेकिन वजूद खोज रही हूँ |
वजूद एक इंसान होने का या फिर औरत की सशक्तिकरण का जिसे मैंने बालपन से ही ,
महादेवी वर्मा की साहित्यिक साक्षात्कार(दूरदर्शन) के तहत उनको देख कर जानना चाहती थी |
उस समय तो उनके रहस्यों को न जान पायी,और उसके बाद मै भी खो गयी अपनी दुनिया में ,
आज उन्हें पढ़ कर गर्व होता है कि और कुछ तो नहीं लेकिन मैं भी एक नारी हूँ |
साहित्यिकता के साथ-साथ हमारा इतिहास गौरवान्वित है हमारी भारतीय नारियों से ,
लेकिन कभी परेशान हो जाती हूँ तो कभी हैरान कि कैसे करूँ इनका गुणगान |
तभी मुलाकात हुई मेरी एक शब्द रूपी दोस्त से जिसने सिखाया है करना मुझे अपनी भावाभिव्यक्ति ,
शब्दों की गहराई मापना मेरा काम नहीं लेकिन उन्हें सजा-सजा कर खुद को बहलाती रहती हूँ |
पहचान और वजूद की कशमकश में मैं अपने आप को कभी ना भूलूँ रखती हूँ इसका ध्यान,
संवेदनशील भरे अरमानों के साथ इस भीड़ में भी कभी तनहा का न हो मुझे एहसास यही मेरी अभिव्यक्ति है |
उसी भीड़ में मैं भी एक कोने में खड़ी पहचान तो नहीं हाँ लेकिन वजूद खोज रही हूँ |
वजूद एक इंसान होने का या फिर औरत की सशक्तिकरण का जिसे मैंने बालपन से ही ,
महादेवी वर्मा की साहित्यिक साक्षात्कार(दूरदर्शन) के तहत उनको देख कर जानना चाहती थी |
उस समय तो उनके रहस्यों को न जान पायी,और उसके बाद मै भी खो गयी अपनी दुनिया में ,
आज उन्हें पढ़ कर गर्व होता है कि और कुछ तो नहीं लेकिन मैं भी एक नारी हूँ |
साहित्यिकता के साथ-साथ हमारा इतिहास गौरवान्वित है हमारी भारतीय नारियों से ,
लेकिन कभी परेशान हो जाती हूँ तो कभी हैरान कि कैसे करूँ इनका गुणगान |
तभी मुलाकात हुई मेरी एक शब्द रूपी दोस्त से जिसने सिखाया है करना मुझे अपनी भावाभिव्यक्ति ,
शब्दों की गहराई मापना मेरा काम नहीं लेकिन उन्हें सजा-सजा कर खुद को बहलाती रहती हूँ |
पहचान और वजूद की कशमकश में मैं अपने आप को कभी ना भूलूँ रखती हूँ इसका ध्यान,
संवेदनशील भरे अरमानों के साथ इस भीड़ में भी कभी तनहा का न हो मुझे एहसास यही मेरी अभिव्यक्ति है |
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