कौन होता है नायक और क्या फर्क है एक नायक और नेता में ? आज यह सवाल मेरे मनमस्तिष्क में धूम मचा रही है | यह सही है कि नेता बनना आसान है जबकि नायक सभी नहीं बन सकते | उसके लिए जरुरत है अपने आपको प्रमाणित करने की न कि जबरदस्ती येनकेन प्रकारेण अपने आपको नायक कहलवाने की | सर्वप्रथम अपनी तटस्थता को बरक़रार रखते हुए अपने भावों और अभिव्यक्तियों को प्रेषित करने का प्रयास करती हूँ | पता नहीं मै कहाँ तक सही हूँ लेकिन यह बात मुझे उद्वेलित करता है कि भारतमाता के सौभाग्य रूपि प्रणेता को नायकत्व की उपाधि से कोई वंचित नहीं रख सकता है |
१. नेता वह है जो अपने विचारों को बिना किसी सकारात्मकता के लोगों के सामने रखता हो जबकि नायक न केवल अपनी बातों को रखता है बल्क़ि उसके द्वारा चुने हुए कर्मक्षेत्रों में भी वह सफल रहता है |
२. नेता के कर्मक्षेत्रों में ही अस्थिरता झलकती रहती जिसके तहत वह अपनी बौखलाहट को व्यक्त करने के लिए नेता रूपि चोंगा को धारण कर लेता है जबकि नायक अपने कर्मक्षेत्र पर सुदृढ़ता के साथ कायम रहते हुए विकसित पथ पर अग्रसित होता है |
३.नेता की दृष्टि सदैव अपने चतुर्दिक माहौल की कमियों को उजागर करना तो होता है लेकिन कोई सकारात्मक सूझाव नहीं सूझता है जबिक एक नायक कमियों के साथ-साथ उसे सुधारने के तरीकों को भी सामने रखता है |
गुण और अवगुण सभी में होतें हैं लेकिन कौन नायक है और कौन केवल नेता बनना चाहता है इसकी पहचान करते हुए हमसब को सदैव नायक ही चुनना चाहिए |कौन तम्हें किस कैम्प से नवाजता है इसकी परवाह किये बिना अपने भावों को सामने रखना है | वैसे भी नायक को कोई अपनी सारी बाधाओं से जूझना आता है | पता है क्यूँ ? क्योंकि वह नायक जो है हम सबका | नेता तो अनेक हैं पर नायक सदैव से एक रहा है | भारतमाता की नायकत्वता को प्राथमिकता देने का समय आ गया है | हम सबको सोचसमझ कर नायक ही चुनना है | आज की राजनितिक सारगर्भिता में नायक की पहचान बताने की कोई आवश्यकता नहीं है | आपसबको अब ऐसा नहीं लगता कि इस बार नायक चुनना है नेता नहीं जो बोले तो नभ भी शांत हो जाये उसकी सारगर्भित पुकार को सुनने के लिए | जो तन मन धन से देश के ही प्रति समर्पित हो | जिससे लोग सुनना चाहें, और नेता लोग उसके विकास में भी खामियां निकालते रहें जिससे वह और विकसित हो सके | सही भी तो है लोग खामिया भी तो वहीं ढूंढते हैं जहाँ केवल गुणों का खान भरा हो |
खैर नेता और नायक सदा से होते हैं और विजयी सदा नायक ही होता है |
१. नेता वह है जो अपने विचारों को बिना किसी सकारात्मकता के लोगों के सामने रखता हो जबकि नायक न केवल अपनी बातों को रखता है बल्क़ि उसके द्वारा चुने हुए कर्मक्षेत्रों में भी वह सफल रहता है |
२. नेता के कर्मक्षेत्रों में ही अस्थिरता झलकती रहती जिसके तहत वह अपनी बौखलाहट को व्यक्त करने के लिए नेता रूपि चोंगा को धारण कर लेता है जबकि नायक अपने कर्मक्षेत्र पर सुदृढ़ता के साथ कायम रहते हुए विकसित पथ पर अग्रसित होता है |
३.नेता की दृष्टि सदैव अपने चतुर्दिक माहौल की कमियों को उजागर करना तो होता है लेकिन कोई सकारात्मक सूझाव नहीं सूझता है जबिक एक नायक कमियों के साथ-साथ उसे सुधारने के तरीकों को भी सामने रखता है |
गुण और अवगुण सभी में होतें हैं लेकिन कौन नायक है और कौन केवल नेता बनना चाहता है इसकी पहचान करते हुए हमसब को सदैव नायक ही चुनना चाहिए |कौन तम्हें किस कैम्प से नवाजता है इसकी परवाह किये बिना अपने भावों को सामने रखना है | वैसे भी नायक को कोई अपनी सारी बाधाओं से जूझना आता है | पता है क्यूँ ? क्योंकि वह नायक जो है हम सबका | नेता तो अनेक हैं पर नायक सदैव से एक रहा है | भारतमाता की नायकत्वता को प्राथमिकता देने का समय आ गया है | हम सबको सोचसमझ कर नायक ही चुनना है | आज की राजनितिक सारगर्भिता में नायक की पहचान बताने की कोई आवश्यकता नहीं है | आपसबको अब ऐसा नहीं लगता कि इस बार नायक चुनना है नेता नहीं जो बोले तो नभ भी शांत हो जाये उसकी सारगर्भित पुकार को सुनने के लिए | जो तन मन धन से देश के ही प्रति समर्पित हो | जिससे लोग सुनना चाहें, और नेता लोग उसके विकास में भी खामियां निकालते रहें जिससे वह और विकसित हो सके | सही भी तो है लोग खामिया भी तो वहीं ढूंढते हैं जहाँ केवल गुणों का खान भरा हो |
खैर नेता और नायक सदा से होते हैं और विजयी सदा नायक ही होता है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें