मंगलवार, 18 मार्च 2014

यांत्रिक साथी(सीपीयू )

होली तो बीत गया लेकिन मेरा यंत्रिक साथी बीमार हो गया है, जिसके कारण मन में अनेक भाव आते हैं,
लोग कहते हैं बहुत साथ दिया है इसने अब कितना साथ देगा , वो भी सुनकर चुपचाप ही रहना पड़ता है |
देखो इसकी वफादारी इसने कलम-कागज़ से अलग टंकित करना सिखाया है और दे दिया एक प्रतिरूप,
यही नहीं  अपने शोध-प्रबंध को प्रतिरूपित में ढलने के बाद ही  इसने आनाकानी दिखाई है |

इसकी जगह नया तो आ गया लेकिन इसने मुझे सिखाया है अतः यह मेरे मन में समाया हुआ है ,
यही सोच ही रही थी कि एक विचार मेरे अन्दर आया चलो उसके बारे में ही कुछ भाव को व्यक्त कर  दूँ |
ठीक है यह कि इसमे मेरी ही भावाभिव्यक्ति को एक रूप तो मिल जायेगा और मेरी संतुष्टि भी ,
बहुत ही मजा हुआ है मेरा यह यांत्रिक साथी ,नए तो आते ही रहेंगे लेकिन इसने मेरे एक प्रतिरूप को संवारा है |

इस ब्लाॅग का श्रीगणेश भी हमने अपने इसी  साथी के तहत टंकित करते हुए एक रूप में ढाला है ,
खैर! भाव तो अनमोल होते हैं इसका कोई मोल नहीं होता है और इसकी अनुभूति भी भोक्ता को ही अनुभूत है|
मिलना-बिछड़ना ,संयोग-वियोग ये सारे तो प्रकृति के ही अनमोल अंग हैं इनसे भला कब कोई अछूता रहा है ,
लेकिन किसके साथ से तुमने एक नए क्षितिज को देखा और सीखा है उसकी आपूर्ति न कर पाना मन में एक टीस को उठाता है,शायद वही शांत और पाक भाव अपने इस यांत्रिक साथी के लिए भी मन में भाव आता है |










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