रविवार, 2 मार्च 2014

पड़ाव

पड़ाव पर पहुँचने से पहले एक उत्सुकता और जिज्ञासा मन में होती है ,
कि चलो मंजिल के पहले पड़ाव पर  पहुँच कर थोड़ा विश्राम करेंते हैं |

लेकिन वहाँ हम जब पहुंचते हैं तो पाते हैं की वक्त ही कहाँ विश्राम का ,
वक्त है भी तो संतुष्टि नहीं है कार्य से क्यूँकि उस पड़ाव ने दिखला दिया है रास्ता मंजिल का |

अभी तो बहुत कुछ है बाकी जिसे पुरा हमें है करना उस मंजिल की दुरी ने दिया समझा हमें,
क्या करें कैसे करें और कब करें की उधेड़-बुन ने मंजिल से  दिया मिला हमें |

मंजिल पर पहुँचीं तो उसने मूझसे बोला तुम्हारा लक्ष्य क्या है अभी भी तुम्हे है पाना  ,
सही ही तो है पड़ाव ने ही सारा राज है आज खोला कि यह विश्राम तो श्वान-निद्रा है |
सतर्क तुम्हे है रहना क्यूँकि मंजिल दर मंजिल के तहत ही लक्ष्य से तुम्हेँ है मिलना ||







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