आज परिवर्तित हो रहा हैं सब कुछ
मित्रता की परिभाषा से लेकर घर की |
यांत्रिकता ने शायद परिवर्तित कर डाला हैं |
लोगों के साथ-साथ उनकी भावनाओं को भी |
आज भावुकता की हँसी उड़ायी जा रही हैं
भावनाओं में बहने वाले को मुर्ख बना रहे हैं |
परंमपरा की लिक पर चलने वाले को
पिछड़े की संज्ञा से नवाज़ा जा रहा हैं |
अरे मनुष्य ! अभी भी समय हैं,
परिवर्तन को लेकर चला-चल|
फिर भी, तू मानव हैं यह मत भूल,
(इश्वर) प्रकृति को चुनौती देने की तू मत कर भूल|
अतः सही-बुरे की पहचान को पैसे पर मत तू तोल,
मानवता को मानवता से ही देख, यंत्रो में मत दे तू बदल |
नहीं तो दिल में रोबोट का तू कर दे वास,

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