रविवार, 2 फ़रवरी 2014

प्राकृतिक-सन्देश

१.सूरज की उग्रता ,चन्द्रमा की शीतलता;
में छिपा हुआ अनमोल-सन्देश हमें यह बतलाता है |
प्रखरता की चमक ऐसी हो कि धूमिलता न उसे छूने पाए ,
शांति व मधुरता भी ऐसी कि लोग उसे अवलोकित करना चाहें ||

२.लोगों की तुम प्रवाह मत करना ,
अरे !इनका तो काम ही है उकसाना |
शांत रहोगे तो भी न लोग छोड़ेगे तुम्हेँ,
उग्र हुए तो एक कहानी मिल जाएगी (लोगों)उन्हें ||

३.खामोश हो गए तो सबसे अच्छा .
तुम्हे साथ मिल जायेगा अपनी पहचान से |
इसमें किसी का दोष नहीं यही मनोवैज्ञानिकता है मानवीयता की |
उठो अब तोड़ भी दो अपनी ख़ामोशी अब जरुरत नहीं इसकी (ख़ामोशी)||

४.तुम्हें(युवा-पीढ़ी)सूरज और चंद्रमा की तरह बनना है ,
देखो उठो और गुनो !कैसे कीड़ों को जलती है इसकी लालिमा |
वहीं चन्द्रमा की शीतलता लुभाती है हर मन को ,
किसी दाग की परवाह ही मत करना इसने तो चाँद को नहीं बख्सा है ||

५. बस परवाह करना तो हर उस प्रकृति(व्यक्तित्व) की ,
जो बेचैन है तुम्हारी सक्षमता से तुम्हे पहचान करवाने की |
अरे पगले !ध्यान से देख और समझ उस मौन इशारे को ,
जो तुम्हें हर पल सकारात्मकता की राह दीखते हैं ||

६.उठ अब जाग भी जा (सभी उदासी की दवा)और ग्राह्य करले उस मौन इशारे को (प्राकृतिक सन्देश ),
चाँद की शीतलता और सूरज सा तेज है सबके पास |
अपना ले और जा पकड़ उस अमूल्य हीरे की चमक को ,
फिर देखना ,वो सारा तेरे पास है ,जिसके लिए तू अब तक बैठा उदास था ||


सूरज की प्रखरता और चन्द्रमा की शीतलता 


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