बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

"पा" और "माँ"

 पा हैं मेरे धैर्यवान तो माँ है मेरी आस्थावान,
धैर्य और आस्था के साथ दृढ़-विश्वास को हमने देखा है |
कभी -कभी मै सोचती हूँ कहाँ से आया है इनमें इतना संतोष ,
तलाशती हूँ, तो कभी उनसे पूछ भी बैठती हूँ तो जबाब में दृढ़-विश्वास रूपी चाहत को पाती हूँ ||
पा का स्नेह नारियल है तो माँ का उसमें समाहित मीठा जल ,(नारियल-पानी),
बचपन से लेकर आजतक पा की अनुमति के बिना माँ ने कोई काम नहीं किया |
आजभी माँ को पापा की नाराजगी का ख्याल करते देखती हूँ ,
योजना और कल्याणकारी बातों  की दार्शनिकता की प्रतिमूर्ति हैं मेरे पा ||
शायद यही दार्शनिकता है मेरे पा कि जिससे उन्होंने कभी अपने स्नेह को दर्शाया नहीं ,
सच भी तो है स्नेह और प्यार प्रदर्शन का भूखा नहीं होता है |
माँ की आस्थाऔर धर्म  की शक्ति का लोहा मैं मानती हूँ ,
जिसके आगे स्नेह से भी स्नेहिल का परित्याग वो कर सकती हैं ||







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