(जो ठान चुके हैं या मान चुके हैं बाबा राजनीति से चौपट कुछ नहीं है मै उनसे एक बात कहती हूँ आप ये बताओ आज राजनीतिक कौन नहीं नहीं है | )
आज जहाँ भी जाओ यदि आप में राजनीतिक-दांवपेंच नहीं आता तो आप को मौन हो उलाहना और भड़ास को शाब्दिक रूप के तहत ही अपनी भावनाओं को डालना होगा | क्या इसका मतलब लेखक सरल होते हैं या वे दांवपेंच नहीं जानते | ये गलतफहमी है |वो तो सभी राहों और मंजिलों के ठुकराये होते हैं कहना उनके साथ बेरहमी होगा | तो क्या कहा जाये ...? मुझे लगता है वे मिलनसार और दांवपेंचों तथा आरोपों से दूर भागते हैं |
इसका मतलब कायर तो उन्हें हम कभी नहीं कह सकते हैं |क्यूंकि उनका मन और मस्तिस्क दोनों बहुत सामंजस्यता के साथ जीना चाहते हैं | मै जब कभी चुनावी हलचलों को देख आरोप-प्रत्यारोपों को देखती हूँ तो भावनाओं के तहत बहने की बजाय एक अन्तर्द्वन्द का उठता है राजनीतिक-चुनाव तो कभी-कभी होते हैं आज तो हर जगह ये नगमा देखने को मिल जाता है फिर लोग इन्हें ही राजनीतिक क्यूँ नाम देते हैं ?
दवाखाना हो या डाकखाना या फिर हो कोई कार्यशाला ,
बिना राजनीतक दांवपेचों के होता कहाँ है काम भला |
आज जहाँ भी जाओ यदि आप में राजनीतिक-दांवपेंच नहीं आता तो आप को मौन हो उलाहना और भड़ास को शाब्दिक रूप के तहत ही अपनी भावनाओं को डालना होगा | क्या इसका मतलब लेखक सरल होते हैं या वे दांवपेंच नहीं जानते | ये गलतफहमी है |वो तो सभी राहों और मंजिलों के ठुकराये होते हैं कहना उनके साथ बेरहमी होगा | तो क्या कहा जाये ...? मुझे लगता है वे मिलनसार और दांवपेंचों तथा आरोपों से दूर भागते हैं |
इसका मतलब कायर तो उन्हें हम कभी नहीं कह सकते हैं |क्यूंकि उनका मन और मस्तिस्क दोनों बहुत सामंजस्यता के साथ जीना चाहते हैं | मै जब कभी चुनावी हलचलों को देख आरोप-प्रत्यारोपों को देखती हूँ तो भावनाओं के तहत बहने की बजाय एक अन्तर्द्वन्द का उठता है राजनीतिक-चुनाव तो कभी-कभी होते हैं आज तो हर जगह ये नगमा देखने को मिल जाता है फिर लोग इन्हें ही राजनीतिक क्यूँ नाम देते हैं ?
दवाखाना हो या डाकखाना या फिर हो कोई कार्यशाला ,
बिना राजनीतक दांवपेचों के होता कहाँ है काम भला |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें