गुरुवार, 23 जुलाई 2015

उलाहना

वो (शब्द) मौन हो देता है उलाहना मुझसे और कहता है देखता हूँ कि कब फिर से लौट आती हो मेरी तरफ तुम ,
द्विग्भ्रमित हो बढ़ते जाते हैं जब तुम्हारे कदम हैरान हो परेशानीयों से घिर जाता हूँ मै और मौन हो टकटकी लगा देखता हूँ तुम्हे !
मैं जानता हूँ जब रीझा न पाएंगें सारे उपकरण तूम्हें तब छिपते-छिपाती लौट आओगी भर आँखों में अश्रु तुम ,
फिर से मैं सतर्क हो तुम्हारे अंदाज में अंकित होता जाऊँगा ,शायद इसी का कहीं न कहीं मुझे भी इसका इंतजार था |
लेकिन चमकती आंखो, व उल्लासित भावावेश में सहजता के साथ जब तुम मुझे संवारती हो मेरी भी उत्तमता देखते बनती है !
एक यही बात है जो मैं भी बेसब्रों कि तरह तुम्हारे भाव में अपने आप को न्योछावर कर देना चाहता हूँ ',
निराशता और उदाशीनता कहाँ भाता है किसी को प्यार कि सकारात्मकता में डुबो देना चाहता हूँ |
प्यार जिसमें ताकत हो आगे बढ़ने की ,एक ऐसा प्यार जिसमें ताकत हो कुछ कर गुजरने की ,
विश्वास और धैर्य के साथ भी जब कभी निराशा तुम्हे आ घेरती है मैं भी धीरे से आ सहज तुम्हें बनाताहूँ !
डरता और रीझता  दोनों ही हूँ जब चंचलता तुममे देखता हूँ लेकिन उसमें भी एक ठहराव सा नजर तुममें आता है ,
इंतजार है तुम्हारे हाँथों से असीमित भाव में सज जाने का जो अमर पहचान बन जाएगी हमारे तुम्हारे विश्वास की ||





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