रविवार, 28 जून 2015

मष्तिष्क व ह्रदय की समन्वय-गाथा

मन और मष्तिष्क कहते हैं मेरे ,मत घबड़ाना आरोपों से तुम! आते हैं इन्हें आने दो ,
दिल को मजबूत बनाने आयें हैं, उपचार समझ कर इस घूंट को पी लेना |
यही नहीं मष्तिष्क को भी क्रियान्वित करेंगे इसी उत्साह से मुष्कान भरी हामी भर देना ,
मत घबड़ाना कभी भी तुम ये तुम्हें सवारने,निखारने शिखरों कि राह दिखाने आयें हैं ||

दागों कि तुम परवाह न करना कुछ दाग आशीर्वादों को लेकर भी आतें हैं ,
निष्क्रीयता को सक्रियता और निराशा को आशा में ढालना भी इन्हीं का काम है |
तुम्हारी सफलता को नजर न लगे इसी लिए काला-टीका माँ ने तुम्हेँ लगाया है ,
विचलन और मायूसी को मत भटकने देना ,उलझनों को सुलझाने कि कला में माहिर बनाने तुम्हें आये हैं ||

हमें क्या करना है ,कैसे करना है आलोचनाएँ ही हमें सकारात्मकता की पाठ पढ़ाती है ,
याद करो उन्हें जिन्होंने दुर्गमता को अपनी बल-बुद्धि से कैसे सुगम बनाया है |
गलत कदमों को रोके रखना और भावी-क़दमों को फूंक-फूंक कर रखने कि पाठ सिखाने आये हैं ,
आरोपों से उपजी आलोचनाएँ ही तुम्हारे भावी -मंजिल कि दुर्गमता को सुदृढ़ बनाने आये हैं ||


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