शनिवार, 7 मार्च 2015

स्त्री या नारी...!

स्त्री तुझे नारी कहना ही उत्तम है जिसमें एक समानता का अनुमान होता है |
क्यूँकि हमसबको याद इसे है रखना अब कोई अतिशयोक्तिपूर्ण बातें न होने पायें अब आगे ||

बस बदलना है तो अपने विचारों में बदलाव लाओ और नहीं है कुछ कहना बाकी |
नारी क्या हैं इसका अहसास ही काफी नहीं न होने पाए कभी भी अत्याचार भारी ||

नारी तुझे भी अपना संज्ञान है दिखाना कि तू क्या है और क्या करना है हासिल तुम्हें |
मान-सम्मान देना और लेना ही केवल नहीं कार्य यहाँ अब तो दुनियाभर को बदलने कि हमने है ठानी ||

बहुत हो चूका नारीवादी वाद-विवादों में नहीं है पड़ना क्यूँकि समानतावादी राह उसे है भाता |
बस ये दिवस मनाकर ही मत भूल जाना नारी ने कभी नहीं चाहा इस तरह से विशेष दिवस को मनाना ||

एक नारी नर को भी नारायण मानती आयी है लेकिन क्या उसने कभी कोई पुरुष-दिवस मनाया है ?
क्यूँकि उसे पता है मन का मान और सम्मान एक दिन का नहीं है इसे तो युग-युग तक हमें निभाना है ||


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