शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

साहित्यकार और दूरदर्शिता

दर्शन और साहित्य कभी-कभी ऐसा लगता है कि दोनों की सन्निध्यता बहुत ज्यादा है तभी तो ये जनमन के अंतर्मन को छू तो लेते हैं लेकिन वर्तमान परिस्थितियों के वजूद के बारे में उनकी भावनाओं को वरीयता नहीं दी जाती लोग कहते हैं की ये सारी बातें व्यावहारिकता से परे हैं |बायरन ने अपनी कविता 'द कर्स आफ मिनरवा' (१८११ )में ही अंग्रजों को एक तरह की चेतावनी देते हुए दीखते हैं (जब  हम भारत की १८५७ के विद्रोह को देखते हैं}|*१८११ की इस कविता में उन्होंने कहा है :
Look to the East,where Ganges, swarthy race 
Shall shake tyrent empire to its base;
Lo !Rebellion reares her ghastly head,
And glares the Nemesis of native dead;
Till Indus rolls a deep purpureal flood
And claims his long arrer of northern blood,
So may ye perish !Pallas, when she gave 
Your free born rights,forbade ye to enslave.*(फ्रांसीसी राज्य क्रान्ति और मानवजाति के सांस्कृतिक विकास की समस्या - डॉ॰रामविलास शर्मा )
ये बाते जाहिर करती हैं कि साहित्यिक-अभिरुचियों को यदि प्रतिरूपित करें तो वे कहीं न कही से भावी -परिणामो को अवलोकित करने में सफल हो जाती हैं |भले ही तत्कालीन परिस्थियाँ उसे स्वीकारने में आना कानी करें | कारण क्या है -साहित्यकार किसी फार्मूला को लेकर नहीं चलता वरण वह अपनी कृतियों में चतुर्दिक परिस्थितियों को गंभीरता के साथ परखते हुए अपने अंतर्मन की दिशा में प्रवाहित होते हुए लिखता है 'जो की एक सत्यनिष्ठता पर आधरित होती है |यही कारण है कि साहित्यकार परखने में सफल हो जाता है और कभी-कभ वह अपनी भावनाओं के तहत भावी योजनाओं की भी घोषणा कर देता है |

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