गुरुवार, 30 जनवरी 2014

नदी के अविरल धार को देखो ,
 कैसे कल-कल बहती है |
 ना ही रूकती ,ना ही टोकती ,
 ना ही पूछती वह जात है |
 मानव के ही नहीं केवल , 
पशु- पंछी के भी प्यास बुझाती है |
 हरियाली है खेतों में इससे तो , 
वहीं बाग -वन को सिंचती है |
कितनी निर्मल कितनी अविरल , 
देखो ना इसकी धार है |
बहते रहना , शीतलता देना , 
अमिट इसकी पहचान है |

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