नदी के अविरल धार को देखो ,
कैसे कल-कल बहती है |
ना ही रूकती ,ना ही टोकती ,
ना ही पूछती वह जात है |
मानव के ही नहीं केवल ,
पशु- पंछी के भी प्यास बुझाती है |
हरियाली है खेतों में इससे तो ,
वहीं बाग -वन को सिंचती है |
कितनी निर्मल कितनी अविरल ,
देखो ना इसकी धार है |
बहते रहना , शीतलता देना ,
अमिट इसकी पहचान है |

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